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धर्मघोष अगार ॥ नवियण ॥ कान्हड दीदा था दरी, बांमी धन परिवार ॥ न० ॥१॥ धन धन शी ल सदा नटुं, जे सेवे नर नार ॥ ॥ ण नव सुख संपद मिले, परनव मुगति दातार ॥ ज० ॥२॥ ध० ॥ पंच महाव्रत उच्चरे, पांचे मेरु समान ॥॥ बकायनी रदा करे, धन कान्हड परधान ॥ न० ॥ ॥३॥ध० ॥ पांच सुमति सेवे सदा, तीन गुपति धरे अंग ॥ ज० ॥ अंग श्यार नण्या सदु, वली बा रे नपंग ॥ न ॥ ४ ॥ध ॥ तप किरियानो खप करे, ले मुनि शुभ आहार ॥०॥ चमर तणी परें बहु नमे, चाले खंमाधार ॥ न० ॥ ५ ॥ ध० ॥ बावी श परिसह जींपतो, करतो कर्मनी हाण ॥ ज० ॥ दशविध यति धर्म साचवे, जीवित मरण समाण ॥ ॥ज० ॥॥ध० ॥ क्रोध मान माया तजी, तजी यो सघलो लोन ॥ ॥ चारित्र पाले निर्मलं, :धे जगमें शोन ॥न ॥ ७ ॥ध ॥ दमा खडग सादियुं, पहेरी शील सन्नाह ॥ ॥ महियला व रें एकलो, कोय नहिं परवाह ॥ ज० ॥ ॥धत, कर्म शत्रु जीपण जणी, जाणे शार्दूलो सिंह ॥न । अप्रमत्त नारंम परें, कोइ न आणे बीह ॥ जाए॥
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