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(३२) वतायें दीठो, पूरवनवनो विचारी ॥ जुगबाहु महारो नामज दूतो, मयण रेहा महारी नारी ॥राए॥ मयण रेहाने कारण मुजनें, मणीरथ नाश्यें मास्यो॥ धरम तो मुज साजज दीधो, मयणरेहा मुने ता यो ॥ रा० ॥ १ ॥ नपगारी गुरुणी जाणीने, देव ता दरिसन जायो ॥ देखे मयणरहा किए थानक, बेती समोसरण मांयो ॥ रा० ॥ ए३ ॥ ततण दे वता तिहां आवीने, प्रनुने प्रदक्षिणा दीधी ॥ साधु साध्वी सर्व बोडीने, मयगरेहाने वंदन कीधी ॥रा ॥ ए३ ॥ पर्षदा देखी हसवा लागी, देवता दीशे गहिलो ॥ स्त्रीने इणे वंदन कीधी, जीगरो प्रनु उत्त र देलो ॥रा ॥ ए४ ॥ हेलो मत ने मकरो हासो, ए एन गुरुणी॥इम जाणीने वंदना कीधी, पा बला जवनी परणी ॥ रा० ॥ ए५ ॥ जुगबादु इसरो नाम ज दूतो, मयणरेहा ए नारी ॥ धर्म तणो णे साहाजज दी, ए हून सुर अवतारी ॥ रा०॥ए६॥ मरणरेहा रे कारण इएने, मणिरथ जाइये मास्यो॥ उपदेश देश संथारो सर्दह्यो, मयणरेहायें तास्यो । राए ॥ ए७ ॥ मयणरेहा सती मनमांहे जाण्यो, कं त दीशे जे महारो ॥ इण अवसरमें संजम ले, प
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