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शालानी, देश सेवा ढुं जायो ॥ रा० ॥ १० ॥ हाथ जोडी युगबादु बोले, एडे थोडो काजो ॥ राज बिरा जो राजसुखोमें, ढुं जावं महाराजो ॥ रा॥११ ॥ म गिरथ राजा राजी दु, दुकुम कीयो ने नाइ ॥ देस किलो कायम कर आजो, ले जाउ फोज सजाई ॥ रा ॥ १२ ॥ युगबाहु उत्यो सीताबरां, हरख दु मन मांहिं ॥ देस किला कायम करी यावी, मुजरो करशुं ना ॥रा ॥ १३ ॥ लइ फोजां युगबादु च ढीयो, मजलें मजलें जायो॥ युगबादु तो मरम न जाणे, मणिरथ कीयो नपायो ॥रा॥१४॥ मणिर थराजा मयारेहाने, नारी वस्त्र मगावे ॥घरेणा ज डाव पहेरण सारु, दासी हाथे पोहोचावे ॥ राण ॥ १५ ॥ राजाना कहेवाथी दासी, दे राणीने जा यो॥ मणिरथराजा चोज बनायो, तिगरी खबर न कायो॥रा ॥ १६ ॥ मयणरेहा मनमाहे जाण्यो, धणी चाल्यो संग्रामो ॥ मयणरेहा मन मुंही विमासे,
जे पिताने गमो॥रा ॥१७॥ एम जाणीने उरा • लीधा, वस्त्र आनूषण सारो ॥ नेह स्नेहे वस्तु मेली
ने, राजा लाग्यो तारो ॥ रा॥ १७ ॥ मयण रेहा ने रीसज आवी, दीयो दासीने जिंजकारो ॥ मुज ध
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