________________
(४३)
रा० ॥ ७७॥ मयणरेहा सती दीक्षा लश्ने, शुभमन संयम पाल्यो ॥ जिनमारगमें नाम दीपायो, नवनो फेरो टाल्यो ॥ रा० ॥ ७० ॥ मयारेहा कुलतारक दुइ, लजा आपणी राखी ॥ विखो सह्यो पण व्रत नवि नांज्युं, सबजुगमांहे शाखी ॥रा० ॥ ए॥ यु गबाहुने मयणरेहा राणी, चंश्यशा नमी नाइ॥ चा रेनां तो कारिज संरिया, मणिरथ नरकज मांहि ॥ रा० ॥ ७० ॥ मयगरेहाने कारण मणिरथ, युगबादु ने माखो ॥ पाबो वलतो सापें खाधो, एको काज न सास्यो ॥ रा० ॥ ७१ ॥ व्यसन सातमुं परनारीनु, जीवघात घर हायो ॥ मणिरथराजा नरकें पहोतो, कामनोग ननो प्राण्यो ॥ रा० ॥ ७२ ॥ श्म जाणी ने कामे न राचो, उखदाइ अपारो ॥ उत्तम प्राणी मनमें धारो, जालो मोद मकारो॥रा० ॥३॥ प्र थम वीरजी दान वखाण्यो, पडी शील अधिकारो॥ तपस्या तपीने कर्म निवारो, नाव वडो संसारो ॥रा० ॥ ४ ॥ एक व्यसने मनोरथ न सीधो, उख पायो संसारो ॥ सात व्यसन जे सेवे प्राणी, तिरो कुःख में अपारो ॥रा ॥ ५ ॥ विषयारस विषसम जा पीने, सतगुरु सेवा कीजे ॥ मणिरथराजानी वात
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org