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नाइ मारीने पानो वलियो, थइ घोडे असवारो॥ सर्प पूबडीये खुर हेतुथी, खाधो ले तिणिवारो ॥राज०॥ ३७ ॥ मणिरथ राजा हे पडियो, मरण पाम्यो त कालो ॥ खबर नहीं को राजसनामें, कम कीधो चालो ॥ राज ॥ ३० ॥ मयणरेहातो धणीकनें आइ, दुःख धरती मनमांहि ॥ मेंतो थांने कह्यो महा राजा, मारेलो थांको ना ॥ राज० ॥ ३ए॥ मयण रेहा तो कहे धणीनें, करो संथारो सोइ ॥ चार शर ण थांने होजो स्वामी, नहीं ले किणरो कोइ ॥ रा ज० ॥४०॥ मोरा प्रीतम थाने युं डं, शीख हैयडा में धारो ॥ साहेब तुं परदेश सिधारो, ढुं नातुं बांधु लारो ॥ रा॥४१॥ मोरा प्रीतम थाने देवअरिहं तो, गुरुनिग्रंथ सुसाधु ॥धरम दया केवलीको नारख्यो, समकितने आराधो ॥ रा ॥४॥मो॥ थाने जीव मारणरों, जावजीव पञ्चरकाणो ॥ सरव प्रकारें मृषा वादमे, अदत्तदानमें जाणो ॥ रा० ॥४३॥ मो० ॥ थाने मैथुन सेवणरो, नवविध प्रगट प्रमाणो ॥ मनु ष्य अने तिर्यंच संबंधि, जावजीव पच्चरकाणो ॥ रा० ॥४४॥ मो० ॥ थाने नवविध,परिग्रहनो परिहारो॥ क्रोध मान माया लोन ए, चारेनो परिहारो ॥रा॥
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