Book Title: Kanhad Kathiyara tatha Mayanrehano Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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(२
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मोहवशे थइ मरण बिगाडे,घेरी नरकमें घाले ॥सगा तोपण पूरव वयरी, थइ उना तिण काले ॥रा ॥ ॥ ५५॥ मित्र होइने मरण सुधारे, ते विरला संसा रो॥ द सरणाने खूस कराव्या, करियो पर उपगारो ॥रा ॥ ५६ ॥ धन्य संसारमें मयणरेहा सती, का रज धणीनुं सुधायुं ॥ जीव्युं तो एनुं रूडो जायो, धन वैभव न संनायुं ॥रा० ॥ ५७ ॥ मो० ॥ मन समता आयो, ममता कोइमत राखो ॥ शत्रु मित्र सदु सरखा जाणो, कोश्गुं शव्य म राखो ॥ ॥ रा० ॥ ५ ॥ जुगबादु तो सरदह्यो संथारो, सा ह्य दीयो ने राणी ॥ कालमासे तो काल करीने, जर उपना विमाणे ॥रा० ॥ एए ॥ मयणरेहा सती म नमें जाण्यो, रखे पकडे मने रायो ॥ वेस बदलावी ने परि जालं, दासी नाम धरायो॥रा ॥ ६ ॥ रामेंगुं बाहिर निकली, गई उजाडी मायो ॥ पडी आपदा नही को साथें, राणी कुंअर जायो ॥ रा० ॥ ६१ ॥ जिजाये दसोटण ढूंते, वधती राज वधा ३॥ विषम वियोगनो कुंअर जायो, जोजो कर्म कमा ३॥रा० ॥ ६२ ॥ चंपो पाबलो राणी मरपे, रखे आवे को लारो ॥ श्म जाणीने कुंअर जायो, दुश्
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