Book Title: Kanhad Kathiyara tatha Mayanrehano Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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४ामो॥ थाने राग द्वेषह, कलहने अप्परकाणो ॥ पैशुन्य चाडी रती अरती, परपरिवाद पच्चरकाणो ॥ रा० ॥ ४६ ॥ मो० ॥ मायामोसो, नही जलो को रीते॥ मिथ्याशव्य मनथी काहाडीने, रहो समकेत पर तीते ॥रा॥४॥मो॥ नही कोई कहेगें, स्वपनो सं पत जाणो ॥ परनवमां ए साथे चालसी, गांठे बांधो नाणो ॥रा॥४॥मो॥ थाने संस करावं, मोमें जीव मत घालो ॥ करी अलोयण कारज सारो, पर जव सुख सोहिलारो ॥ रा ॥ ४ए ॥ मो० ॥ श्म करो विचारो,धरम साचो करी जाणोमानधणीज ल जीवित जाणो, श्रीजिनवचन प्रमाणो ॥रा॥५० मो॥ ए दोष करमनो,
किने दोष न दीजें ॥रुण वैयरतो कोइ न बूटे, बांध्या जे चुक्तीजे ॥२०॥५१॥ मोण॥ कुण माताने पिता, कोण कुटुंब कोण ना॥ घरकीतो साहेब नही स्त्री, स्वारथ सरव सगा ॥ रा० ॥ ५५ ॥ मो० ॥ सरदहजो संथारो, चार आहार प रिहरियो। मरण सहने साहेब इकदिन, सायतो रा खजो हियो ॥ रा० ॥ ५३॥ मयणरेहा बाती गाढ करीने, कारज पतिनो सुधारयो॥ मित्र होने मरण सु धारे, धन्य मित्र तणो नेह पायो ॥रा॥५४॥मो॥
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