Book Title: Kanhad Kathiyara tatha Mayanrehano Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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(३१)
G॥ विद्याधरतो राजी दूठ,रूप घणो ने नारी ॥ तरत विमान ने पाडो वाल्यो,हुँ लइ जाउं घरबारी ॥रा ॥ ॥१॥ मयणरेहा तो मनमें जाण्यो,तुरत वढ्यो जे पा बो॥कुण जाणेकिणदिस सजावे,यंतो न दीसे बागे ॥रा२॥ विद्याधरने राणी पूजे,जातो किण दिसें ना॥आवतो तो ते पाडो वलियो,किसी आई दिल मांही ॥ रा ॥७३ ॥ नगवंतना हुँ दरिसण जातां, तुज सरखी मली नारी ॥ म जाणी हुँ पालो वलियो, सुख विलगुं संसारी ॥रा ॥ ४ ॥ मयणरेहा मीठे वचनें कहे, नगवंत दरिसण जातां ॥ मारग मांहे तो हुँ मली डं, नको बदु दरिसण करतां ।। रा० ॥ ५॥ तीर्थकरना दरिसण करतां,प्रसन्न होसे थारी काया॥ विद्याधर सुणि पाडो वलीयो, मयण रेहा मन नाया ॥स ॥ ६ ॥ समोसरणगुं नेडा आवी, विमानथी उतरिया ॥ करी वंदनाने वखाण सुणियो,कारज सती ना सरिया ॥ र ॥ ७ ॥ जुगबातो देवता दूठ,उठे ने उद्यम आणी ॥ करजोडी देवांगना हर्षलं, जयज य कहे मुखवाणी ॥ ॥णगमे स्वामी आइ नप ना,हवा हमारा नाथो॥कुण गुरुनी तुमे सेवा कीधी, किशो दान दीयो हाथो ॥रा० ॥॥ ज्ञाने करीने दे
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