Book Title: Kanhad Kathiyara tatha Mayanrehano Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

View full book text
Previous | Next

Page 31
________________ (३०) ६ साहेबकी उनी मेली हुँ,आइबेती वनमांदी ॥रा ॥ ७२ ॥ विषम उजाडी तीर नदीनो, सुख नही ले तिल रती ॥ मयणरेहा तो कुःखकरी दोरी, कष्ट प ड्यो ने सती ॥रा ॥ ७३ ॥ जूरे घणीने करेय वि सापा, सुखनर बाती फाटे ॥ मयणरेहानुं दुःख प्र नु जाणे, बेटी ने तट माटे ॥ रा० ॥ ७ ॥ संयो ग रूपणी रु ढुंती, वियोगणी तिगवाली॥ नाथ विहूणी मुखज करती, आणी रणमे राली ॥रा ॥ ७५ ॥ देखो सगाण संसारो, वीबडतां नहीं वा रो ॥ इम जाणीने सदगुरु सेवो, लाहो लेजो लारो ॥रा० ॥ ७६ ॥ तिण अवसरमें देवता जाण्यो, : ख करे ने राणी ॥ वैक्रियरूप कां हाथीनु, राम त मांमी पाणी ॥रा ॥ ७७ ॥ कुःख वीसरीने वि सम कीनो, सूंढ उबाले पाणी॥ फुःख दोरीने हाथी दीठी,रामत देखे राणी ॥७॥ जियुं जियुं रामत देखे राणी,अचरिज मनमां नारी ॥धर्मअंकूरो पुण्य प्रकारें, आवे नरनारी ॥रा॥७॥ जलनरी हाथी तेहने सुंमयु,देखी राणीनबाली॥तेटले नेडो आवी निकल्यो, पागंतर॥ देवता कोश परनपगारी,राणी गुंढेनबाली॥ इतरेकोश्यायनिकल्यो,राणी विमानमें घाली ॥रा॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50