Book Title: Kanhad Kathiyara tatha Mayanrehano Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 20
________________ (१५) पंच तीरथ जात्रा करी, निर्मल कीधां गात्र ॥ ज० ॥ बारह नावी जावना, मुनिवर चारित्र पात्र ॥ ना ॥ १० ॥ध० ॥ पाप आलोयां आपणां, सदगुरु के री साख ॥ न ॥ सयत जीव खमाविया, जे चोरा शी लाख ॥ ज० ॥ ११ ॥ध० ॥ अंत समय जाणी करी, करि अगसण पच्चरकाण ॥ ॥ देवलोकें थ या देवता, पहिले कल्पं जाण ॥ ज० ॥ १२ ॥ध॥ अष्ट कर्मनो क्य करी, लहि मानव अवतार ॥न०॥ मोदतणां सुख पामशे, धन कान्हड अणगार ॥ ॥ १३ ॥ध ॥ सरस ढाल ए आठमी, साधु तो आचार ॥ न ॥ मान कहे सुख संपदा, जे सेवे नर नार ॥ न ॥ १४ ॥ध० ॥ ॥ढाल नवमी॥ ॥ वाडी फूली अति नली ॥ मन नमरा रे ॥ ए देश ॥ कान्दड साधु शिरोमणि ॥ मन जमरा रे ॥ लाधो सुर अवतार ॥ लाल मन जमरा रे ॥ शील त एगा परनावथी ॥ म० ॥ साधी शदि अपार ॥ला ल म०॥ १ ॥ शीलें सुर सान्निध्य करें ॥ म ॥शी लें पासे राज ॥ लाल ॥ शोलें संपत संपजे ॥म ॥ सीके वंबित काज ॥ ला० ॥ म० ॥॥मायण सा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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