Book Title: Kanhad Kathiyara tatha Mayanrehano Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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गीतो परदेश सिधास्यो, राजा पडीयो मारी लारो॥ रा० ॥ १५ ॥ दासी मन दलगीर दुश्ने, राजा पासें जायो॥ मयणरेहातो कोप करीने, दीनी वस्तु बगा यो ॥रा ॥ २०॥ मणिरथराजा रात समयमां, म हेल नाइने आयो, दरवाजो जडीयो तेणे दीठो, हे लो मारे रायो॥रा ॥२१॥ मयणरेहा मनमांहे जाण्यो,मणिरथराजा आयो॥बीजो उपाय तो कोइन दीसे, दीनं सासुने जगायो ॥रा ॥ ॥ मयणरे हा तो बानुं जश्ने,वात सासुने जगायो ॥ अमलने व स मातायें जाण्यो, बेटो नूलें बायो॥रा॥२३॥ एतो महेल बेटा युगबादुनो,मेहेल पेलीकानी थारो॥ वचन माताना सांजली राजा, लाज्यो घणो तिणिवारो ॥राण ॥२॥ मयणरेहा मनमोहे जाएयो, पड्यो राजा माहा रेलारो॥तो कासीद हुँ मेलुं धणीने,हेला आवजो ए कवारो ॥ राज ॥ २५ ॥ वीती वात लखी कागल मां, जीवती जाणो मानें ॥ तो घर पाडां वहेला आ वजो, दगो कीयो नाइ थाने ॥ राज ॥ २६ ॥ का सीद कागद दीनो वेगो, जुगबाहुने जाई ॥ कागल वाची जुगबादुयें जाण्यो,दगो कीयो ने नाई ॥राज ॥ १७ ॥ श्म जाणी जुगबाहु वलियो, ढील न कीधी
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