Book Title: Kanhad Kathiyara tatha Mayanrehano Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 15
________________ (१४) ॥ ७॥ ॥ ले घरने संचयो, गयो वेश्या वास ॥ नहखूटनर तिहां वसे, तिहां कीधी मुफ हास ॥७॥ ढाल ॥ तिहां माहरी हांसी कीधी रे, कीधी रे, वे श्या मुजां दिन दीधी॥ पांचशे सोनैया दीधां रे, दी धा रे, तिणें शीश चढावी लीधां ॥ ए ॥०॥ शिश चढावी तरत गुं, मांझी मुफगुं वात ॥ बाघा था वो अम घरे, वासो रहो एक रात ॥१०॥ ढाल ॥ मेडीमाहे सेफ बिडग रे, बिगइ रे, वेश्या विहसंति थाइ ॥ पूनमदिन पूरो चंद रे, चंद रे, देखी थयो अधिक आणंद ॥ ११ ॥ ॥ पूनम दिन परना रीयं,जे मुजव्रतनी कार ॥ एह न नांजु बाखडी,निश्च य ने व्यवहार ॥१२॥ ढाल ॥ में दान तणो मिष कीधो रे,कीधोरे, वेश्यानो दुकमज लीधो रे ॥ रऊनी जश् हाटें सूतो रे, सूतो रे, वेश्यासेंती नवि खूतो ॥ १३ ॥ ॥ वेश्यासुं खुतो नहिं, पाली व्रतनी आण॥रात गइ हवे उगीयो, उदयाचल शिर जाण ॥१४॥ ढाल ॥ उदयाचल उग्यो जाण रे, जाण रे, रड मफल विहाण ॥ कान्हड कहि वातज ताजी रे, ताजार, सदु लोक दुवा मनराजी ॥१५॥ ॥ ॥ मन राजा सहुको दुवा, वात कही में आ करतो ते Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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