Book Title: Kanhad Kathiyara tatha Mayanrehano Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
View full book text
________________
(१३) कढुंसवे, सांजलजो सहुसंत कान्हड कठियारो कहे, ते दाखं दृष्टंत ॥ ७॥
॥ ढाल बनी॥ ॥राग सोरह॥ यत्तनी देशी ॥ कटियारे मांमी वा त रे, वातरे ॥ नारी वेचुं दिन ने रात ॥ एक दिव स मुनिसर मलिया रे, मलिया रे, पातक सवि दूरेंट लियां ॥१॥त्रुटक॥ पातक सवि दूरे टव्यां,सुणि मुनि वरनी वाणी ॥ चोथा व्रतनी आखडी, में लीधी हित
आणी ॥२॥ ढाल ॥ चित्तमें एक वात विचारी रे, विचारी रे, तजी पूनिम दिन परनारी ॥ निजनारीशं नित्य नेहारे, नेहारे, पालुं हुं व्रतनी रेहा ॥३॥
० ॥ एम करतां दिन केटले, नारी वेची आण ॥ दोय टका दें ले गयो, श्रीपति सेवक जाण ॥ ढाल ॥ श्रीपतिनो सेवक एह रे, एह रे, नारीले गयो निज गेह ॥ बावना चंदननी जारी रे, नारी रे,श्रीपति म न वात विचारी ॥ ५॥०॥ वात विचारी तुरता, सोनश्या सो पांच ॥ आण दिया एकण समे, कांश न करी मन खंच ॥ ढाल ॥ मनमां न शकांत च रे, खंच रे, मुफ मलियो एहा संच ॥ पांचों सोनैया दीधां रे, दीधां रे, मेंखोजे घाली लीधां
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org
![](https://s3.us-east-2.wasabisys.com/jainqq-hq/d5979ee96afe47f20faac350f9652b29bddaf48ee80e09a0c70f92bc2a2b5b82.jpg)
Page Navigation
1 ... 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50