Book Title: Kanhad Kathiyara tatha Mayanrehano Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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(१०)
॥ दोहा ॥ ॥ नापित तेडी नायका, तुरत मंगायुं तेल ॥ चाक पाक कान्हड कियो, वेश्या सुरंगी रेल ॥ १ ॥ मन गमतां नोजन तणा, कीधा सरस आहार ॥ल विंग सोपारी एलची, मुबानो व्यवहार ॥ २ ॥ पहे खां मुलमुल बसतरां, शिर पचरंगी पाघ ॥ आगे उना उलगु, गावे नवनव राग ॥३॥ चबायां दीवा कि या, सखर बनावी सेज ॥ वेश्या आवी विहसती, जि पलं अधिको हेज ॥४॥ पूरो नग्यो पाधरो, पूनम रे दिन चंद ॥ कान्हड फांखी जालीयें, आंखें दीठो इंद॥५॥ आज अ मुजाखडी, परनारी परिहा र ॥ अवसर आव आपणो, कर्द नलोपुंकार ॥ ६ ॥
॥ ढाल पांचमी ॥ ___॥ देशी चूनडीनी॥ रजनी उग्यो एकलो, हवे तुर त बनावी तोत रे लाल ॥ मेदानने मिस कान्हजी, ग यो बापणो पहेरी पोत रे लाल ॥१॥धनधन कठिया रो कान्हजी, जिणे राखीव्रतनी रेख रे लाल ॥ मेली सोनैया पांचशे, वली मूक्यो परनो वेष रे लाल ॥ ॥२॥ध ॥ नरबाजारें हाटमें, सूतो निंद घुराय रे लाल ॥ वेश्या जोवे वाटडी, आयो नहिं कान्हड राय
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