Book Title: Kalyankarak
Author(s): Ugradityacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Govind Raoji Doshi Solapur

View full book text
Previous | Next

Page 15
________________ (8) - - - तक चलता है । आमाशय, पकाशय व ग्रहणी में अन्न का पचन होता रहता है । अन्न की पुरःस्सरण क्रियासे अन्न आगे आगे सरकता रहता है । इस क्रियाके लिए व अन्न की गौलाई वगैरे को कायम रखने के लिए समानवायु की सहायता आवश्यक है । समानवायु के प्रस्पंदन, उद्वहन, धारण, पूरण, इन कार्योंसे पचन में सहायता मिलती है। विवेक लक्षण से अन्न के सार-किट्टविभजन होता है । सारभाग का शोषण [ Absorbtion ] होता है । और किट्टभाग गुदकांड तक पहुंचाया जाता है । स्थूल ग्रहणी का कुछ भाग गुदकांड व गुदत्रिवली में अपानवायु का कार्य होकर किट्ट [ मल ] बाहर फेंका जाता है । यह सर्व कार्य होते समय धातुवोंके स्थूलस्वरूप को प्रत्यक्ष दिखाया जा सकता है । पाचकपित्त [अमाशयस्थरस, स्वादुपिंडस्थरस, यकृतपित्त, पक्काशयस्थपित्त आदि ] का उदीरण हमें प्रत्यक्ष प्रयोग से दिखाया जा सकता है । प्रसिद्ध रशियन-शास्त्रज्ञ पावलो ने इन का प्रयोग किया है। और भोजन में उदीरित होनेवाले पित्त को नलीमें लेकर बतलाया है । पित्तके साथ ही वहांपर क्लेदयुक्त कफ का भी उदीरण होता है । और बाद में समानवायु के भी कार्य पचनव्यापार में होते हैं यह सिद्ध कर सकते हैं। अन्नांतर्गत स्थूलवायु को वायुमापक यंत्र से माप सकते हैं। यह सब आधुनिक प्रयोगसाधन से सिद्ध हो सकते हैं । फिर क्या ये ही त्रिधातु हैं ? और यदि ये ही आयुर्वेद के प्रतिपादित त्रिधातु हो तो आयुर्वेद की विशेषता क्या है ? और वह स्वतंत्रशास्त्र के रूपमें क्यों चाहिए ? आयर्वेदप्रतिपादित त्रिधातुवोंमें स्थूलस्वरूपयुक्त त्रिधातुवोंका ऊपर कथन किया ही है । इससे आगे बढकर यह विचार करना चाहिए कि यह उदीरित पित्तकफ कहां से उत्पन्न हुए ? शरीरावयव, उनके घटक व परमाणु सर्वतः समान रहते हुए यह विशेष कार्य कौनसे द्रव्यके या गुणकर्म के कारण से होता है ? गुणकर्म द्रव्याश्रयी हैं । तब इन भिन्न २ अवयव विभागोंमें पित्तकफादि सूक्ष्म द्रव्य अधिकतर रहते हैं, अतएव उस से पित्तकफ का उदारण हो सकता है । यह युक्ति से सिद्ध होता है। यदि कोई कहें कि उन उन अवयवों का स्वभाव ही वह है तो आगे यह प्रश्न निकलता है कि ऐसा स्वभाव क्यों ? तब पित्तकफ के सूक्ष्मांश का अस्तित्व रहने से ही पित्तकफ का उदीरण उस से हो सकता है। स्थूलसमान से स्थूल कार्य होते हैं व स्थूलांशों का अनुग्रह होता है । स्थूलांशको बलदान सूक्ष्माश से प्राप्त होता है। सूक्ष्म व अतिसूक्ष्म त्रिधातु का कार्य अतिसूक्ष्म परमाणुपर्यंत चालू रहता है। यह कार्य त्रिवातुओंमें जिस धातु का अविकतर चालू हो उन २ धातुवोंका उन अवयवो में स्थूलकार्य चालू रहता है । वस्तुतः [सामान्यतः ] तीनों ही धातुवोंके विना जीवन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 ... 908