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त एवं दोषा विषमा वधाय"। त्रिधातु अत्यंत सूक्ष्म होकर व्यापी हैं। शरीर के अनेक मंडलों में वह व्याप्त होकर रहते हैं । अवयवों में व्याप्त हैं, घटक में व्याप्त हैं । और परमाणु में भी उन की व्याप्ति है। उन के भिन्न २ स्थान हैं। उन के कार्य शरीर में रात्रिंदिन चालू ही रहते हैं । यद्यपि उन का नाम वायु, पित्त व कफ है । तथापि कुछ वैद्यक ग्रंथोंमें खासकर भेलसंहितामें वे " प्रतिमूलधातु" के नाम से कहे
- वात, पित्त व कफ के स्थान व कार्योंका सविस्तर वर्णन कल्याणकारक ग्रंथ में है। वात, पित्त व कफ यह त्रिधातु जीवन के मूल आधारभूत हैं । किसी भी प्राणी के शरीर में इनका अस्तित्व अनिवार्य है । बिलकुल सूक्ष्मशरीरी प्राणी को भी देखें तो मालुम होगा कि उसके श्लेष्मभय शरीर में जल का अंश रहता ही है । वह अपने आहार को ग्रहण कर उसका पचन करते हुए अपने शरीर की वृद्धि करता ही है । यह कार्य उस के शरीर में स्थित पित्त धातु के कारणसे होता है। इतना ही क्यों ? अत्यंतात्यंत सूक्ष्मशरीर में भी यह सर्व व्यापार होते रहते हैं। और उस में सप्तधातुओंमें से रसधातु विद्यमान रहता है। आगे जैसे जैसे वह प्राणी अनेकावयवी बनता है तब उसका शारीरिकव्यापार भी बढता जाता है । . प्राण्यंग जैसे जैसे बढता जाता है वैसे ही उस में प्रतिमूलधातु किंवा स्थूल धातु अधिकाधिक श्रेणी से उपलब्ध होता है, किन्ही प्राणियोंमें रस व रक्त यही धातु मिलते हैं। किन्हीमें रस, रक्त व मांस और किन्हीमें रस, रक्त, मांस, अस्थि, मजा व शुक्र ऐसे धातु रहते हैं । प्रतिमूल धातु किंवा सप्तधातु-स्थूल धातुवोंमें कोई भी धातु प्राण्यंग में रहे या न रहे परंतु त्रिधातु तो अवश्य रहते ही हैं। वे तीनों ही रहते हैं। तीनोंकी सहायता से शारीरिक व्यापार चलता है । मानवीय शरीर में अत्यंत प्रकृष्ट धातुक शरीर रहने पर प्रतिमूल धातु रहते हैं। ओजसदृश (धातुसार-तेज ) भी रहते हैं । परंतु इन सबके मूल में त्रिधातु रहते हैं ।
___मानवीय शरीर में विधातुवोंका भिन्न भिन्न स्थान व कार्य मौजूद है। इन पदार्थोके गुण भिन्न २ हैं । वायु शरीर के भिन्न २ अवयवसमूहोंमें कार्य करनेवाला है। इसी प्रकार पित्त व कफ भी हैं। यह भी सर्व शरीरभर एक ही न होकर भिन्न २ प्रकार के समुच्चयरूप हैं। उनकी जाति एक, परंतु आकार भिन्न है । स्थूल, सूक्ष्म व अतिसूक्ष्म इस प्रकार उनके स्वरूप हैं । त्रिधातुवोंका व्यापार शारीरिक व मानसिक ऐसे दो प्रकार से होता है। मन के सत्व, रज व तम इन त्रिगुणोंपर वायु, पित्त व कफ का परिणाम होता है । मानसिक व्यापारोंका नियंत्रण त्रिधातुवोंके कारण से होता है ।
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