Book Title: Kalpsutram
Author(s): Bhadrabahuswami, 
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund

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Page 9
________________ * * * * वेइ, वद्धावित्ता सुहाँसणवरगया आसत्था वीसत्था करयलपरिग्गहियं दसनहं सिरसावत्तं . - मत्थए अंजलिं कटु एवं वयासी ॥५॥ एवं खलु अहं देवाणुप्पिआ ! अन्ज सयणिजंसि | सुत्तजागरा ओहीरमाणी २ इमेआरूवे उराले जाव सस्सिरीए चउद्दस महासुमिणे पा-१ सित्ताणं पडिबुद्धा, तंजहा, गय-जाव-सिहिं च ॥६॥ एएसिं णं उरोलाणं जाव चउदसण्हं महासुमिणाणं के मन्ने कल्लाणे फलवित्तिविसेसे भविस्सइ ? तएणं से उसभदत्ते । माहणे देवाणंदाए माहणीए अंतिए एअमटुं सुच्चा निसम्म हट्टतुट्ठ जाव हिअए धाराहय-5 कलंबुअंपिव समुस्ससियरोमकूवे सुमिणुग्गहं करेइ, करित्ता ईहं अणुपविसइ, अणुपविसि-5 त्ता अप्पणो साभाविएणं मइपुत्वएणं बुद्धिविन्नाणेणं तेसिं सुमिणाणं अत्थुग्गहं करेइ, . करित्ता देवाणंदं माहणिं एवं वयासी॥७॥ओरालाणं तुमे देवाणुप्पिए! सुमिणा दिट्ठा, १-२ भद्दासण १-२ सुहासणवरगया क० १-२ देवाणुपिआ! उ० * * *

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