Book Title: Kalpasutram
Author(s): Bhadrabahuswami, Shantisagar
Publisher: Rushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha

View full book text
Previous | Next

Page 174
________________ श्रीकल्पकौमुद्यां ७क्षणे ॥१६८ ।। ध्यतीति श्रुत्वा नेमिरूचे हे तात ! क्षीणभोगकर्माऽहमस्मि, किंच- एकत्रीपरिग्रहेऽनन्तजन्तुसङ्घातपातके कोऽयं भवतामाग्रहः १, अत्र कविः, -स्त्रीविरक्तोऽपि नेमिः पूर्वभवस्नेहेन वीवाहमिषेणागत्य मुक्तिं गमनाय राजीमतीं प्रति सङ्केतमकरोदिव, अत्रान्तरे लोकान्तिकदेवा 'जयजये' ति कुर्वाणाः हे नाथ ! धर्मतीर्थं प्रवर्त्तयेत्युक्त्वा महावीरवत् सांवत्सरिकदानमदापयत्। *तं होऊ णं | अरहा अरिट्ठनेमी जाव दक्खे तिन्नि वाससयाई कुमारे अगारवास मज्झे वसित्ताणं पुणरवि लोअंतिएहिं जिअकप्पिएहिं देवेहिं तं चैव सवं भाणिअवं जाव दाणं दाइआणं परिभाइत्ता ॥ १७२ ॥ * जे से वासाणं पढमे | मासे दुचे पक्खे सावणसुद्धे तस्स णं सावणसुद्धस्स छट्ठीपक्खेणं पुण्हकालसमयंसि उत्तरकुराए सीआए | सदेवमणुआसुराए परिसाए अणुगम्ममाणमग्गे जाव बारवईए नयरीए मज्झमज्झेणं निग्गच्छइ, निग्गच्छ| इत्ता जेणेव रेवयए उज्जाणे तेणेव उवागच्छद्दरत्ता असोगवरपायवस्स अहे सीअं ठावेह रत्ता सीआओ पचोरुहइ, पच्चोरुहइत्ता सयमेव आभरणमल्लालंकारं ओमुअइश्त्ता सयमेव पंचमुट्ठिअं लोअं करेइरत्ता छट्टेणं भत्तेणं अपाणएणं चित्ताहिं नक्खत्तेणं जोगमुवा गएणं एवं देवदूतमादाय एगेणं पुरिससहस्सेणं सद्धिं मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारिअं पवइए ॥१७३॥ *अरहओ णं अरिट्ठनेमी चउप्पन्नं राईदिआई निचं वोसट्टकाए चिअत्तदेहे तं चैव सव्वं जाव पणपन्नस्स | राईदिअस्स अंतरा वट्टमाणस्स जे से वासाणं तच्चे मासे पंचमे पक्खे आसोअबहुले, तस्स णं आसोअबहुल|स्स पन्नरसी पक्खेणं दिवसस्स पच्छिमे भागे उर्जित सेलसिहरे वेडसपायवस्स अहे अट्टमेणं भत्तेणं अपाणएणं श्रीनेमिचरित्रं ॥१६८॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246