Book Title: Kalpasutram
Author(s): Bhadrabahuswami, Shantisagar
Publisher: Rushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha

View full book text
Previous | Next

Page 179
________________ श्रीकल्पकौमुद्यां ७क्षणे ॥१७३॥ श्रीजिनान्तराणि सेसं जहा मल्लिस्स) कुन्थुजिननिर्वाणाद्वर्षकोटिसहस्रोनपल्योपमचतुर्थभागेनारनिर्वाणं, ततश्च सहस्रकोटिपश्चषष्टिलक्षचतुर| शीत्यादि ॥ १८८ ॥ (संतिस्स णं० जाव सबदुक्खप्पहीणस्स एगे चउभागूणे पलिओवमे वइकंते पन्नहिच, सेसं जहा मल्लिस्स) शान्तिनिर्वाणात्पल्योपमार्द्धन कुन्थुनिर्वाणं, तत चतुर्थभागपल्यपश्चषष्टीत्यादि ॥ १८९ ।। (धम्मस्स णं० जाव सव्वदुक्खप्पहीणस्स तिन्नि सागरोवमाइं पन्नहिं च, सेसं जहा मल्लिस्स)। धर्मनिर्वाणात्पादोनपल्योपमोनैस्त्रिभिः सागरैः शान्तिनिर्वाणं, ततश्च पादोनपल्योपमपञ्चषष्टीत्यादि । १९० ॥ (अणंतस्स णं० जाव सबदुक्खप्पहीणस्स सत्त सागरोवमाइं वइकंताई पन्नहिं च, सेसं जहा मल्लिस्स)। अनन्तनिर्वाणाच्चतुर्भिः सागरैधर्मनिर्वाणं, ततः सागरत्रयपश्चषष्टीत्यादि, द्वयोरैक्ये 'सत्त सागरोवमाई' ति सूत्रोक्तम् ।।१९१ ॥ __(विमलस्स णं जाव सबदुक्खप्पहीणस्स सोलस सागरोवमाइं वइक्ताई पन्नहि च, सेसं जहा मल्लिस्स) विमलनिर्वाणान्नवमिः सागरोपमैरनन्तनिर्वाणं, ततः सप्तसागरपञ्चषष्टीत्यादि, द्वयोरक्ये 'सोलस' त्ति सूत्रोक्तम् ॥१९२॥ __ (वासुपुज्जस्स णं० जाव सव्वदुक्खप्पहीणस्स छायालीसं सागरोवमाई वइक्ताई पन्नहिं च, सेसं जहा मल्लिस्स)। वासुपूज्यनिर्वाणात्रिंशता सागरैर्विमलनिर्वाणं, ततः षोडशसागरपञ्चषष्टीत्यादि ।१९३॥ (सिजंसस्स णं जाव० सव्वदुक्खप्पहीणस्स एगे सागरोवमसए वइकंते पन्नहिं च, सेसं जहा मल्लिस्स)। श्रेयांसनिर्वाणाच्चतुष्पश्चाशता सागरैर्वासुपूज्यनिर्वाणं, ततः षट्चत्वारिंशत्सागरपञ्चषष्टीत्यादि ।१९४। ॥१७॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246