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વિભાગ-૫
गाय का घी खाईये आयुर्वेद में कहा गया है “आयुरेव धृतम्” • भोजन में ऋतु के अनुसार औषधि रूप अर्थात घी ही आयु (जीवन) है। में थोड़ी मात्रा में मिर्च व गर्म मसालों घी विषनाशक है । गाँवों में साप का का उपयोग अवश्य करें, लेकिन घी के जहर उतारने के लिए घी पिलाया जाता बिना अधिक मात्रा में इनका सेवन है। हमारे भोजन के माध्यम से हर दिन हानिकारक सिद्ध होता है । उर्वरकों (फर्टिलाइजर) और कीटनाशकों • घी खाने से पतला व्यक्ति मोटा और का जहर हमारे शरीर में जाता है । घी मोटा व्यक्ति पतला होता है ।। ही इन विषों से रक्षा कर हमें गंभीर • हृदय रोगियों के लिए देशी गाय का घी बीमारियों से बचा सकता है। अमृत के समान है । घी खाने से घी-धृति-स्मृति अर्थात् बुद्धि- .घी आँख, कान और नाक की शक्ति धेर्य-स्मरणशक्ति बढ़ती है।
बढ़ाता है और मोतियाबिंदु, कान दर्द, • घी खानेवालों को कभी भी संधियों (जोड़ों) सायनस आदि रोगों का नाश करता है । का दर्द नहीं होता।
सिरदर्द, माइग्रेन, लकवा, पार्किन्सन्स एसिडीटी और अल्सर जो वर्षों तक पीछा आदि मस्तिष्क संबंधी रोगों में यह नहीं छोड़ते, घी खाने से दो से तीन रामबाण की तरह काम करता है । महिने में ठीक हो जाते है।
ध्यान रहे : घी दहीं को मथकर निकाले घी वातनाशक होने से बुढ़ापे को पास गये मक्खन को तुरंत गर्मकर बनाया जाता नहीं फटकने देता और वृद्धों को बुढ़ापे है, जबकि बाजार में दूध की क्रीम (बटर) के रोगों से बचाता है।
को गर्मकर बनाया गया बटर ओइल ही घी • घी पित्तनाशक होने से यकत (लीवर), के नाम से बिक रहा है । इसके दोषों के
गुर्दे (किडनी), गर्भाशय आदि अंगों की कारण ही घी बहुत बदनाम हुआ है । व टायफाइड, पीलिया, मलेरिया, चर्मरोग, ५ वर्ष बाद देशी गाय का घी २०००/
गाँठ (ट्यूमर) आदि से रक्षा करता है। - रू. किलो बिकेगा • घी रोग प्रतिरोधकशक्ति बढ़ता है। प्रसिद्ध कहावत “अंधेर नगरी चौपट
अनिद्रा, अति सक्रियता (हाइपर राजा, टके सेर भाजी टके सेर खाजा' की एक्टिविटी), चिड़चिड़ाहट, क्रोध, भय, अंधेर नगरी में सब्जी और मिठााई एक ईर्ष्या, सदमा आदि मानसिक व्याधियों भाव तो मिलते थे । लेकिन लोकतंत्र, विज्ञान, में घी चमत्कारिक असर दिखाता है। क्वालिटी और विकास (?) के युग में ३०
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