________________
चलो कि तुम जो आहार ले रहे हो, उसमें कुछ-न-कुछ विकृति अवश्य है। रक्त-शुद्धि और रक्त-गति के समुचित नियंत्रण के लिए भी आहार की स्थिति और गति पूरी तरह प्रभावी होती है। यह आम समझ की बात है कि जैसा खावे अन्न, वैसा रहे मन। जैसे यदि आप शराब पीएंगे, तो शरीर को गति देने वाली कोशिकाएं सुप्त और अवरुद्ध हो जाएंगी; जर्दा-तंबाकू का इस्तेमाल करेंगे, तो शरीर की हड्डियां गलने लग जाएंगी; अधिक भोग-परिभोग किया, तो काययंत्र की मूल ताकत कमजोर हो जाएगी, यानी दीर्घ जीवन प्राप्त करने का इच्छुक व्यक्ति अपने ही कारणों से अपनी उम्र को घटा बैठेगा। दीर्घ जीवन के लिए तन-मन की शक्ति का संरक्षण और अभिवर्द्धन सहज अनिवार्यता है। हम बासी भोजन, गरिष्ठ अथवा बाजारू भोजन से परहेज रखें। हम हमेशा घर में बना हुआ, ताजा-सात्विक भोजन ही ग्रहण करें। अधिक मीठा, अधिक खटा, अधिक नमकीन चीजों के उपयोग पर संयम रख सकें, तो ज्यादा बेहतर है। भोजन ज्यादा न खाएं, यथावश्यक भोजन करना ही स्वस्थ जीवन का मंगल सूत्र है। हां, यदि आवश्यकता से दो ग्रास कम ग्रहण करें, तो पेट की आंतों को भोजन पचाने में तनाव का सामना न करना पड़ेगा। भोजन उतना हो, और वह हो, जो हमें स्वास्थ्य और स्फूर्ति प्रदान करे। अधिक गरम और गरिष्ठ भोजन करने से वीर्यस्राव-रजस्राव हो जाएगा। आखिर शरीर तो उतने ही आहार की शक्ति ग्रहण करेगा, जितने की उसे अपेक्षा है। वह भोजन घातक है, जो उत्तेजना जगाए या प्रमाद पैदा करे।
थोड़ा-सा व्यायाम भी
यदि स्वस्थ भोजन करने के बावजूद शरीर में कमजोरी रहती है, शक्ति शिथिल रहती है, तो इसका अर्थ है कि शरीर के ऊर्जा-स्रोतों में कहीं कोई रुकावट आ गई है, तब हमें किसी स्वास्थ्य-चिकित्सक से अवश्य सलाह लेनी चाहिए। भोजन की सात्विकता के साथ हमें शरीर के विभिन्न अवयवों के स्वस्थ संतुलन हेतु थोड़ा-बहुत व्यायाम भी अवश्य करना चाहिए। इसके
20
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org