Book Title: Jiye to Aise Jiye
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Pustak Mahal

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Page 129
________________ तीसरा चरण : चित्त-दर्शन : संस्कार-बोध समय : 20 मिनट साधक स्वयं के चित्त की स्थिति का अवलोकन करे । संवेदनाओं से उपरत हो जाने के कारण चित्त का गुण-धर्म शांत हो चुका है या अभी भी विकार, तनाव या वृत्ति-संस्कार हावी हैं ? चित्त की अंतः स्थिति का निरीक्षण... चित्त की जैसी भी स्थिति है, उसका अवलोकन... चित्त का, कर्मास्रव का, अचेतन मन के पर्यायों का आत्मभावे निरीक्षण । साधक अपनी ध्यान - चेतना को, स्वयं की उदात्त ऊर्जा को चित्त की ओर केंद्रित रखे । चित्त के विकार, कषाय, राग-द्वेष की ग्रंथियां स्वतः शिथिल होंगी । स्व-चित्त के प्रति स्वयं का सम्यक् जागरण ही ध्यान की मूल आत्मा है । हम मस्तिष्क के ऊर्ध्व आकाश में, ज्ञान- प्रदेश में ध्यानस्थ हों । ध्यान की पराचेतना को स्वयं की बुद्धि एवं अतिमनस् तत्त्व के साथ एकाकार होने दें; स्वयं को आत्मविश्वास और असाधारण चैतन्य - शक्ति से आपूरित होने दें। चौथा चरण : शून्य दर्शन : आत्मबोध समय : कालातीत साधक स्वयं के भीतर साकार हो चुके शांत, सौम्य स्वरूप में विश्राम ले; स्वयं में स्वयं का उपराम, स्वयं में स्वयं का बोध... काया के लोक में समाहित आत्मस्वरूप, आत्मचेतना, आत्मप्रकाश का अनुभव, आनंद, अंतर्लीनता, संबुद्ध-दशा । यह विधि नौ माह तक की जाए। नौ माह नहीं, तो तीन माह की जाए । तीन माह नहीं, तो एक माह ही सही । एक माह भी ज्यादा लगता हो, तो पंद्रह - दिन । वह भी ज्यादा लगते हों, तो सात दिन । यदि इससे भी कम करना हो, तो हम इस ध्यान-विधि की सात बैठक लगाकर इसके मंगल परिणामों को जीवन में आत्मसात् कर सकते हैं । चित्त के मनोविकारों का निर्मलीकरण होगा; तन-मन के आंतरिक रोगों का उपचार होगा, मानसिक शांति और आत्मशक्ति का विकास होगा । व्यक्ति देह में रहते हुए भी विदेहानुभूति की ओर अग्रसर होगा; स्वयं की सुप्त उच्च शक्ति का अभ्युदय होगा । 1 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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