________________ जिएँ तो ऐसेजिएँ स्वस्थ और मधुर जीवन जीने का पहला और आखिरी मंत्र है : सकारात्मक सोच / यह एक अकेला ऐसा मंत्र है, जिससे न केवल व्यक्तिगत और समाज की, वरन् समय विश्व की समस्याओं को सुलझाया जा सकता है / यह सर्व कल्याणकारी महामंत्र है। कोई अगर पूछे कि मानसिक शांति और तनाव-मुक्ति की कीमिया दवा क्या है, तो सीधा-सा जवाब होगा सकारात्मक सोच / मैंनेछनगिनत लोगों पर इस मंत्र का उपयोग किया है और आज तक यह मंत्र कभी निष्फल नहीं हुआ / सकारात्मक सोच का अभाव ही मनुष्य की निष्फलता का मूल कारण है। मेरी शांति, संतुष्टि, तृत्ति और प्रगति का अगर कोई प्रथम पहलू है, तो वह सकारात्मक सोच ही है। सकारात्मक सोच ही मनुष्य का पहला धर्म हो और यही उसकी आराधना का बीज-मंत्र / सकारात्मक सोच का स्वामी सदा धार्मिक ही होता है। सकारात्मकता से बढ़कर कोई पुण्य नहीं और नकारात्मकता से बढ़कर कोई पाप नहीं; सकारात्मकता से बढ़कर कोई धर्म नहीं और नकारात्मकता से बढ़कर कोई विधर्म नहीं। - श्री चन्द्रप्रभ 70/Rs 100/ 8960D ISBN978-81-223-0920-1 पुस्तकमहल दिल्ली * मुंबई * बेंगलुरू * पटना * हैदराबाद www.pustakmahal.com For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org 97881223092011 Jain Education International