Book Title: Jiye to Aise Jiye
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Pustak Mahal

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Page 128
________________ देह-दर्शन के क्रम में पहले हम ऊपर से नीचे की ओर उतरते हैं, फिर नीचे से ऊपर की ओर चढ़ते हैं। हमारी सजगता पांवों से बैठक की ओर गतिशील हो। साधक सुषुम्ना के द्वार पर (रीढ़ की हड्डी का अंतिम निचला सिरा) सजग हो, द्रष्टा बने। स्वयं की ध्यान-चेतना को सुषुम्ना पर इतना प्रगाढ़ होने दे, जितना पहले श्वास पर केंद्रित किया था। यह केंद्रीकरण अतिरिक्त शक्ति और चेतना को जाग्रत और ऊर्ध्वमुखी करने में मदद करेगा। साधक साक्षी-चेतना से मेरुदंड के आंतरिक हिस्से पर केंद्रित हो, स्वयं की प्रगाढ सजगता के साथ धीरे-धीरे ऊपर उठे। इस ऊर्ध्वयात्रा में कटि-प्रदेश के मध्य क्षेत्र पर सजग हो। यह मनुष्य का स्वास्थ्य केंद्र है। कमर के भाग में कोई दर्द-संवेदना हो, तो साधक उसके गुण-धर्म को देखे। स्वयं की ध्यान-चेतना से वह प्रदेश व्याप्त हो जाने दे। दर्द और पीड़ा का स्वतः विरेचन होगा। साधक पीठ के मध्य-क्षेत्र का द्रष्टा बने। हृदय और पीठ के मध्य स्थल पर हो रही ऊर्जस्वित स्थिति पर जागे। सुषुम्ना के रास्ते गर्दन-प्रदेश की ओर ध्यान की चेतना बढ़े। यहां साधक अपने सूक्ष्म शरीर की शक्ति का शोधन होने दे। साधक द्रष्टा के करीब पहुंच रहा है। साधक पृष्ठ मस्तिष्क की ओर ऊर्ध्वमुखी हो। वहां व्याप्त सूक्ष्म ऊर्जा तरंग को जाने, अनुभव करे। कर्णेद्रिय में व्याप्त श्रवण-शक्ति पर साधक की सजगता...। चक्षु-अंग में व्याप्त दर्शन-शक्ति पर साधक की सजगता...। अग्र मस्तिष्क पर दोनों भौंहों के मध्य अंतर्दृष्टि-केंद्र पर साधक जागे और प्रज्ञालोक का अनुभव करे। 127 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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