________________
भगवान जीसस का यह कथन कितना भावपूर्ण है कि मैं धरती पर पापियों को उनके पापों का प्रायश्चित्त कराने आया हूं। उन्होंने स्वयं की इबादत करने वाले लोगों से इतना ही कहा कि मुझे न तो तुम्हारे फूलों की ज़रूरत है, न मिष्ठान्न और मोमबत्तियों की । तुम केवल मेरे कदमों में उन पापों को चढ़ाओ, जिन्हें तुमने अपनी अज्ञान - अवस्था में किया है । मैं तुमसे तुम्हारे पाप इसलिए प्राप्त करना चाहता हूं, ताकि तुम्हें पुण्यात्मा बनाने के लिए तुम्हारे पापों को माफ़ कर सकूं ।
कितने सुकोमल भाव हैं ये कि भगवान हमारे पापों को भी अपने लिए पुष्प बना रहे हैं और हमसे सदा-सदा के लिए हमारे पापों के पुष्पों को स्वीकार करके, हमारे जीवन को मानो पुण्यमयी पूजा बना रहे हैं ।
पूजा-स्थल पुण्यात्माओं के लिए ही नहीं
जब किसी बूढ़े गरीब व्यक्ति को यह कहकर मंदिर और गिरजे से बाहर निकाला गया कि यह दिव्य स्थान तुम जैसे पापियों के लिए नहीं है, तो उस बूढ़े फकीर की आवाज़ ने दुनिया भर के मंदिर, मस्जिद और गिरजाघरों के द्वार खुलवा दिए। उसने कहा- पुजारी, अगर मंदिर-मस्जिद के द्वार हम पापियों के लिए नहीं खुले हैं, तो तुम्हीं बताओ कि ये मंदिर-मस्जिद-गिरजे किस पुण्यात्मा के लिए हैं । अरे, पुण्यात्माओं को तो अपने पुण्य बखानने और भोगने के सौ-सौ स्थान हैं। हम पापियों को अपने पापों का प्रायश्चित्त करने के लिए आखिर यही तो एक ठौर है । अगर पापियों के लिए ईश्वर के द्वार बंद कर दिए गए, तो पुजारी, ध्यान रखो, पापी और पाप करते जाएंगे । हम पापियों को तुम्हारी सहानुभूति की ज़रूरत है । हमें निष्पाप होने में तुम हमारी मदद करो ।
सहानुभूति में पात्रता का विचार न हो
पाप तो पुण्य की ही पूर्व अवस्था है । आखिर कौन पुण्यात्मा ऐसा है, जो पहले कभी पापी न रहा हो ! अज्ञान - अवस्था में पाप हो जाया करते हैं ।
Jain Education International
80
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org