Book Title: Jiye to Aise Jiye
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Pustak Mahal

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Page 106
________________ प्रतिध्वनित होने लगे। उसे अपने बोले जाने पर हर बार यही सुनाई दियाहां, मैं तुमसे प्यार करता हूं, प्यार करता हूं, प्यार करता हूं, प्यार करता हूं, सो मच आई लव यू! प्रेम के बदले में प्रेम के गीत लौटकर मिलते हैं और नफरत के बदले में नफरत के शोले। हमारा तो यह जीवन एक निरंतर जारी अनुगूंज भर है। कौन आदमी नहीं चाहता कि उसे प्रेम का संगीत सुनने को न मिले, आनंद का अमृत पीने को न मिले, पर क्या हम प्रेम और आनंद के बीज बोने के लिए तैयार हैं? लौटकर वही तो आएगा, जिसकी तुम आज व्यवस्था कर रहे हो। इस बात की फिक्र मत करो कि हवाएं किस ओर की चल रही हैं। तुम अपनी दिशा और लक्ष्य का निर्धारण करो। जिस दिशा की ओर नाविक पाल बांधेगा, नौका उस ओर ही गतिशील होगी। कैसे बनें हम स्वस्थ सोच के स्वामी? झांकना होगा हमें अपने भीतर के गलियारे में और देखना होगा कि कैसी है हमारी आज की सोच। भीतर के बगीचे में फालतू की घास-फूस उग आई हो, तो चिंता करने जैसी कोई बात नहीं। हम घटिया स्तर के घास-फूस को काट फेंके, बेहतर सोच के बीज बोएं। आज नहीं तो कल मरुस्थल में मरुद्यान अवश्य लहलहा उठेगा। भटके हुए राहगीर को रास्ता ज़रूर मिल जाएगा। सकारात्मकता में कई समाधान स्वस्थ सोच का स्वामी बनने के लिए पहला. सूत्र है : व्यक्ति सकारात्मक सोच का स्वामी बने। यह एक अकेला ऐसा सूत्र है, जिससे न केवल व्यक्ति की, वरन् समग्र विश्व की समस्याओं को सुलझाया जा सकता है। यह सर्वकल्याणकारी महामंत्र है। मेरी शांति, संतुष्टि, तृप्ति और प्रगति का अगर कोई प्रथम पहलू है, तो वह सकारात्मक सोच ही है। सकारात्मक सोच ही मनुष्य का पहला धर्म हो और यही उसकी आराधना का मंत्र। सकारात्मक सोच का स्वामी सदा धार्मिक ही होता है। सकारात्मकता से बढ़कर कोई पुण्य नहीं और नकारात्मकता से बढ़कर कोई पाप नहीं; 105 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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