Book Title: Jiye to Aise Jiye
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Pustak Mahal

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Page 105
________________ कोई भी दूसरा व्यक्ति हमारे साथ गलत व्यवहार नहीं करता। हमने पूर्व में जैसा व्यवहार किया था, दूसरे के द्वारा वही तो लौटकर आता है। दूसरे का हर कृत्य हमारे अपने द्वारा किए गए कृत्य की वापसी है। गालियों के बदले में कांटों की ही सौगात मिलेगी और तुम्हारी मंगल वाणी के बदले फूलों का गुलदस्ता ही समर्पित होगा। यह जगत् तो व्यक्ति की अपनी ही प्रतिध्वनि है-प्यार देकर प्यार पाओ, नफरत देकर नफरत पाओ। क्या आप जीवन के इस विज्ञान को आत्मसात् करेंगे कि यह जगत् और कुछ नहीं, हमारे अपने ही जीवन की गूंज और अनुगूंज भर है! जीवन, एक अनुगूंज भर जब एक बालक अपनी मां से नाराज हो उठा, तो उसने मां से साफ शब्दों में कह डाला, मम्मी, आई हेट यू-मां, मैं तुमसे नफरत करता हूं, नफरत करता हूं, नफरत करता हूं। बेटे के द्वारा ऐसा कहे जाने पर मां ने उसे लपककर पकड़ना चाहा, मगर बच्चा मां के हाथ न आया। वह गांव के बाहर जंगल की तरफ भाग गया। उसके मन में मां के प्रति अभी भी गुस्सा था। वह जंगल में जोर-जोर से चिल्लाकर कहने लगा-हां-हां, मैं तुमसे नफरत करता हूं। मां, मैं तुमसे नफरत करता हूं। उसके जोर से चिल्लाए जाने पर उसे लगा कि इस जंगल में और भी कोई बालक रहता है, जो उसी को संबोधित करते हुए कह रहा है-हां-हां, मैं तुमसे नफरत करता हूं। हां, मैं तुमसे नफरत करता हूं। बच्चा जंगल में अपनी ही जैसी नफरत भरी आवाज सुनकर भयभीत हो उठा। वह पुनः अपने घर की ओर दौड़ा और घर पहुंचते ही अपनी मां की छाती से लिपटकर रो पड़ा। मां ने उसे यूं रोता देख पूछा-क्या हुआ बेटे, घबराए हुए क्यों हो? बच्चे ने जंगल की बात सुनाई। मां समझ गई कि वहां क्या हुआ। उसने बेटे से कहा-माई सन, इस बार जंगल में जाकर जोर से कहो-मैं तुमसे प्यार करता हूं, प्यार करता हूं, प्यार करता हूं! आई लव यू! बेटे ने ऐसा ही किया। उसके द्वारा कहे गए प्यार भरे शब्द जंगल से 104 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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