Book Title: Jiye to Aise Jiye
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Pustak Mahal

Previous | Next

Page 122
________________ व्यक्ति चाहे कुछ भी क्यों न कर ले, पर जब तक भीतर में फैली हुई विकृत-विषैली जड़ों को काटा-मिटाया नहीं जाएगा, तब तक उनकी अभिव्यक्ति और पुनरावृत्ति होती रहेगी। वह हर बार अपने मन के अंधे वेग के आगे विवश-बेबस हो जाएगा। जैसे बंधा हुआ पशु कहीं भी जाने और कुछ भी करने के लिए स्वतंत्र नहीं होता, ऐसी ही स्थिति विकारों से आबद्ध मनुष्य की होती है। वह स्वतंत्रता और मुक्ति का आकांक्षी होकर भी आबद्ध और परतंत्र बना रहता है। जीवन का सत्य हमें इस बात का संकेत देता है कि व्यक्ति चिरकालीन आनंद का स्वामी बन सकता है। वह शांत मन, निर्मल चित्त, सुकोमल हृदय और प्रखर बुद्धि का संवाहक बन सकता है। वह विश्व-शांति और मैत्री का एक ऐसा अंग और सूत्रधार बन सकता है कि धरती को फिर से प्रेम और सत्य की सुवास मिल सके। ध्यान : जीवन का वरदान मनुष्य की मानसिक शांति, बौद्धिक ऊर्जस्वितता और आध्यात्मिक स्वास्थ्य-लाभ के लिए ध्यान एक बेहतरीन प्रयोग है। तनाव-मुक्ति और जीवन-शुद्धि के लिए ध्यान स्वयं एक विज्ञान है। संबोधि-ध्यान, ध्यान के प्रयोगों का वह संस्कारित, परिष्कृत और वैज्ञानिक स्वरूप है, जिसका प्रयोग मानव-जाति के लिए हर हाल में स्वस्तिकर, कल्याणकर और लाभदायी है। हम जरा तलाशें कि क्या हम शरीर से रुग्ण हैं और आरोग्य से वंचित हैं; तनाव और मानसिक अशांति से पीड़ित हैं, क्या हमारी बुद्धि और स्मरण-शक्ति मंद है, क्या हम अपने मनोविकारों से व्यथित हैं, क्या हममें स्वार्थचेतना सघन है; क्या हम आत्मबोध और ईश्वरीय शक्ति से संबद्ध होने के इच्छुक हैं? यदि ऐसा है, तो बड़े प्रेम और अहोभाव से कहूंगा कि संबोधि-ध्यान के प्रयोग मानव-जाति के लिए वरदान हैं, संजीवनी हैं। संबोधि-ध्यान उनका है, जो इसे जीते हैं। 'संबोधि' शब्द, शब्द नहीं, साधक का पहला और अंतिम कदम है। संबोधि शब्द सम्यक् बोध का वाचक है, संपूर्ण बोध का सूचक है। बोध जीवन का 121 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130