Book Title: Jiye to Aise Jiye
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Pustak Mahal

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Page 85
________________ 1 आदमी के लिए भारभूत हो जाता है, वहीं उल्लसित मन से किया गया कार्य सुख का सेतु बन जाता है । इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि कार्य छोटा है या बड़ा, फर्क इससे पड़ता है कि कार्य करने वालों का मन छोटा है या बड़ा । बड़े दिल से किए गए छोटे कार्य भी आदर्श हो जाया करते हैं। छोटे मन से किए गए बड़े कार्य भी तुच्छ और व्यर्थ साबित हो जाते हैं । क्या हम बुद्धि के आईने में यह देखना पसंद करेंगे कि हमारे जीवन के कार्य और कर्त्तव्य क्या हैं और हम जो कार्य करने वाले हैं, उनके प्रति हमारा मन कैसा है? हम अपने जीवन के छोटे-से-छोटे कार्य को भी इतने उच्च मन से संपन्न करें कि हमारा हर कार्य शांति - आनंद और मुक्ति की किरण बन जाए। मन में हैं रोगों के बीज क्या हम यह राज की बात समझना चाहेंगे कि जीवन के जितने रोग हैं, उन सबके बीज हमारे अपने ही मन में समाए हुए हैं। हम अपने मन के लक्षणों को समझकर शरीर के रोगों की चिकित्सा कर सकते हैं । अपने मन में पलने वाले भय पर विजय प्राप्त करके हम अपनी दस्त की शिकायत पर अंकुश लगा सकते हैं; क्रोध-आक्रोश को मिटाकर जीवन को चैतन्य-कणों से आपूरित कर सकते हैं । द्वेष-भाव और मोह का त्याग करके अनिद्रा रोग का निवारण कर सकते हैं। ये जो बातें हैं वे अत्यंत वैज्ञानिक और मनोवैज्ञानिक हैं। तुम ताज्जुब करोगे कि जब कभी तुम्हारा चित्त भयभीत हुआ, तुम्हारा जी मचलने लगा और तभी तुम्हें शौच की शंका हो गई । तुम पाते हो कि चित्त में विकार की तरंग उठते ही श्वासों की गति असंतुलित हो गई, रक्तचाप की गति बढ़ गई और तुम्हारा तन-मन अनियंत्रित हो गया । मन के रोग और विकार शरीर पर उतरकर आते हैं । स्वस्थ जीवन के लिए व्यक्ति का शरीर और मन दोनों का स्वस्थ होना जरूरी है । हाल ही में जर्मनी के एक महान् चिकित्सा - विज्ञानी डॉ. बैच ने अपने गहरे अनुसंधान के बाद फ्लावर रेमेडीज चिकित्सा पद्धति विकसित की। इस पद्धति से आम व्यक्ति के मानसिक और न्यूरो- फिजीकल रोगों का उपचार Jain Education International 84 For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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