Book Title: Jiye to Aise Jiye
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Pustak Mahal

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Page 69
________________ और सद्भावना की रसधार बहानी होगी। हमेशा पानी ही आग को बुझाता है; आग, आग को नहीं। आपका क्रोध आपके जीवन का प्रबल मानसिक विकार है। अपने उग्र और क्रोधी स्वभाव के कारण ही समर्पित और सेवानिष्ठ लक्ष्मण सबके प्रेम और सहानुभूति के पात्र न बन सके। हम यह तो सोचें कि हमें क्रोध से मिलता क्या है, सिवा तनाव, असंतुलन और अविवेक के ? आओ, अब हम हर रोज ऐसा उपवास करें कि जिसमें भोजन तो हो, पर क्रोध नहीं। मैं आने वाले चौबीस घंटों के लिए क्रोध नहीं करूंगा, यह संकल्प आपके जीवन को तपोमय बना देगा, आपको उपवास का फल मिल जाएगा। क्या आपको लगता है कि जीवन में आपका कोई शत्रु है; आपको किसी से नफरत है? यदि हां, तो कृपया अपने मन में पलने वाले वैर और द्वेष के भाव को दूर करें। माना कि हम सत्य के लिए सलीब पर नहीं चढ़ सकते, लेकिन किसी की गलती को माफ करने की करुणा तो दर्शा ही सकते हैं। हम प्रेम की पवित्र वेदी पर द्वेष और घृणा का त्याग करें। आपका यह छोटा-सा त्याग आपके जीवन का महान् बलिदान बन जाएगा। आप स्वयं तो सुखी होंगे ही, उन्हें भी आपके सुख का सुकून मिलेगा, जिनसे कि हम अब तक जलते और कटते रहे, जिनके पतन में रस लेते रहे। बुराई त्यागें, भलाई सहेजें आनंदमय जीवन का स्वामी बनने के लिए हम अपने अहम् और दंभ का भी त्याग करें। अरे, दुनिया में किसकी अकड़ रही है! सब परिवर्तनशील हैं। राजा, रंक बन जाते हैं और रंक, राजा। आखिर हर संत का अपना अतीत होता है और हर पापी का एक भविष्य। दंभी तो आखिर हारता और टूटता ही है। जीता और जीतता तो वह है, जिसके हृदय में सरलता और विनम्रता है। हम दंभ का तो त्याग करें ही, यदि हमें लगता है कि हमारे मन में स्त्री-पुरुष के अंगों के प्रति कामुकता है, तो यह सरासर हमारे मन का Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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