Book Title: Jiye to Aise Jiye
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Pustak Mahal

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Page 76
________________ कोई गलत भाषा या गलत व्यवहार का आचरण कर भी डाले, तो हममें इतनी सहन-शक्ति हो कि हम उसे माफ भी कर सकें। परिस्थितियां चाहे जैसी उपस्थित हो जाएं, लेकिन ध्यान रखें कि किसी भी परिस्थिति को अपनी प्रसन्नता छीनने का अधिकार न दें। व्यक्ति की शालीनता और विनम्रता ही उसकी मधुरता है; उसकी प्रसन्नता और सहिष्णुता ही उसकी कुलीनता और गुणवत्ता है। आखिर कोई तुम्हारे बोल-बर्ताव, आचार-विचार को देखकर ही कहेगा कि तुम कैसे हो। अच्छाई से बढ़कर कोई ऊंचाई नहीं होती। ऊंचा उठने के लिए अच्छा बनना अनिवार्य पहलू है। दुनिया में महान् से महान् लोग हुए हैं। वे हमारे जीवन के आदर्श बनें। संभव है कि हम उन जैसा आदर्श न भी बन पाएं, लेकिन उनके आदर्शों के प्रकाश में अपने जीवन की दिशा तो निर्धारित कर ही सकते हैं, पार लग ही सकते हैं। क्यों न तुम मुझे ही अपना मित्र बना लो। शायद मैं तुम्हारी संस्कार-शुद्धि की कोई कीमिया दवा बन जाऊं। अच्छा गुरु और अच्छा शिष्य-दोनों एक-दूसरे से सीखते हैं। कुछ तुम्हें मुझसे सीख मिल जाए और कुछ मुझे तुमसे। क्या यह निमंत्रण स्वीकार करोगे? हर नई सुबह हमें संदेश देती है-आओ, हम फिर से कोशिश करें। 75 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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