Book Title: Jiye to Aise Jiye
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Pustak Mahal

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Page 32
________________ प्रति आदर-समादर पूर्ण व्यवहार करें। निश्चित ही हम शांत हैं, लेकिन तभी तक, जब तक कि हमारे साथ कोई शांतिपूर्ण व्यवहार करे। क्या किसी की कटु बात को सुनने की, पचाने की क्षमता और समता हममें है? यों तो हर व्यक्ति ईमानदार ही होता है, लेकिन इससे भी बड़ी सच्चाई यह है कि व्यक्ति तभी तक ईमानदार रहता है, जब तक कि उसे बेईमानी करने का मौका नहीं मिलता। जो रिश्वत और प्रलोभन से प्रेरित होकर अपने कर्त्तव्य-पथ से विचलित नहीं होता, वही व्यक्ति प्रामाणिक और नैतिक व निष्ठाशील कहला सकता है। पहले जमाने में एक पतिव्रत या एक पत्नीव्रत का महत्व रहता था। आज स्थिति यह है कि पत्नी के गुजर जाने या तलाक ले लिए जाने पर पिता अपनी पुत्री के लिए झट से अन्य पति की तलाश शुरू कर देता है। यही बात पुरुषों के लिए भी देखी जाती है। अब शील की अर्थवत्ता तभी तक रहती है, जब तक युगल एक-दूसरे के मुआफिक रहता है। थोड़ा-सा मुखालिफ़ होते ही किसी तीसरे की तलाश शुरू हो जाती है। यह कितने बड़े विस्मय की बात है कि इतने विकासशील विश्व में कितना अधिक स्वार्थ, आतंकवाद और भ्रष्टाचार पनपा है। यह सब कुछ एक ही दिन में शुरू नहीं हुआ है। क्रिया चाहे ह्रास की हो या विकास की, प्रगति की हो या अवनति की, धीरे-धोरे ही घटित होती है। यद्यपि विश्व में शांति और एकता के, मैत्री और भाईचारा के, नैतिकता और प्रामाणिकता के स्वर सुनने को मिलते हैं, वैसे दृश्य भी देखने को मिलते हैं, किंतु जब तक आम हवा में बदलाव नहीं आएगा, स्थितियां विकृत ही रहेंगी। आखिर कुछ दायित्व हम पर भी बनते हैं। विश्व के वातावरण को सौम्य और सौहार्दपूर्ण बनाने के लिए जरूरी है कि विश्व की हर इकाई इसके लिए सहज हो, समर्पित हो। विश्व आखिर व्यक्तियों की इकाइयों का ही समूह है। हर इकाई का स्वस्थ और सुमनस् होना विश्व के मंगल स्वरूप का आधारसूत्र है। 31 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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