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पार्श्वपरम्पराके आचार कैसे रहे ? उपलब्ध आगमोके किन स्तरोमें पाचनाथीय परम्पराकी कैसे कैसे झांकी होती है । उस समय तीर्थ चैत्य आदिकी स्थिति क्या थी ? पार्श्वनाथ पहाडकी इतनी ख्याति कबसे और क्यो ? तथागत बुद्धके साथ पार्थपरम्पराका कोई सम्बन्ध है । है तो क्या और कैसा : बौद्ध पिटकोमें बार बार 'नातपुत्र'का निर्देश आने पर भी जव निर्ग्रन्थ यामो ( महावतों ) का वर्णन आता है तब महावीरके पंच महानतोंके स्थानमें चार महानतोका निर्देश क्यो ?-इत्यादि अनेक प्रश्न ऐसे है जिनके बारे में संशोधन करने पर आज भी अनेक तथ्य ज्ञात हो सकते है । मेरी रायमें आजकलके अभ्यासकी दृष्टिसे इस ओर हम जैन लोगोंका ही ध्यान मुख्यतया जाना चाहिये।
लेखकने पार्श्वनाथके पूर्वजन्मोंकी पौराणिक कथा भी निबन्धमें दी है । इतने अधिक पूर्वजन्मोकी कथाके इतिहासका पता तो कभी संभव ही नहीं, तो भी इस पौराणिक कथाके अभ्यासको हम अनेक तरहसे रुचिकर बना सकते हैं । पहिले तो यह कि श्वेताम्बर दिगम्बर साहित्यमें जो पुराना कथाभाग हो उसकी तुलना की जाय और खोज की जाय कि, उस पौराणिक कथाका प्राचीन आधार क्या रहा ? क्या दोनों परम्पराओने किसी एक सोतमेंसे अपने अपने पुराण लिखे ' या दोनों परम्पराका सोत कोई जुदा था दोनोंमें अन्तर है तो किन किन बातोंमें ? तथा पार्श्वनाथके चरित्र विषयक जो अनेक ग्रन्थ आगे रचे गये है उनमें क्या क्या परिवर्तन होता गया है? और किस किस दृष्टि से 2 एवं पार्श्वनाथके पौराणिक जीवन और वर्तमान जीवनके किन किन अंशो पर जैनेतर पुराणवर्णनोंकी छाप है ? --ये सब विषय तुलनात्मक दृष्टिसे