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ईश्वर क्या है?
Being (सर्वश्रेष्ठ) है तो उसका और परमाणुका संबन्ध ही किस प्रकार संभव हो सकता है । वृक्षसे गाखाएं निकलती है और उनमें पत्र पुष्प आते है, इसमें वुद्धिमानीकी क्या बात है ? पाश्चात्य पण्डितोंकी भांति जैन भी कहते है कि ईश्वरको सृष्टिकर्ता माननेसे वह भी हमारे जैसा अमुक्त-ससीम पुरुष Anthropomorphic वन जाता है । जैनाचार्य प्रभाचन्द्रने कहा है
मानविकी प्रयत्नाधारता हि कर्तृतान सशरीरेतरता इत्यप्यसंगतं, शरीराभावे तदाधारत्वस्याप्यसंभवाव,मुकात्मवत्-"
अर्थात् यदि ईश्वरको जगकर्ता माने तो उसे शरीरधारी मानना पड़ेगा, क्यों कि शरीरके बिना जगतके समान बृहद् सावयव पदार्थ वन हो नहीं सकता। नैयायिक कहते है कि शरीरकी ऐसी कोई विशेष आवश्यकता नहीं है, जगत्रचना संबन्धी ईश्वरके ज्ञान, चिकीर्षा और प्रयत्न ही पर्याप्त है । जैनोंक पास इसका भी उत्तर है । वे कहते है कि गरीर ही न हो तो ज्ञान, चिकीर्षा और प्रयत्न कहां रहे ? मुक्तात्माके समान ईश्वर यदि शरीर रहित हो तो उसमें प्रयत्नका होना संभव नहीं है । ऐसा ईश्वर संसारकी रचना नहीं कर सकता। निष्कर्ष यह हुआ कि, ईश्वरको सृष्टिकर्ता मान लेनेसे उसे शरीरधारी मानना आवश्यक है और वह शरीरधारी हुवा तो बस हमारे जैसा मर्यादित और छोटा हो जायगा । ईश्वग्ने करुणासे प्रेरित होकर इस सृष्टिकी रचना की है, इस मतके सम्बन्धमे पाश्चात्य निरीश्वरवादियों के समान प्रमेयकमलमार्तण्डकार कहते हैं
"न हि करुणावतां यावनाशरीरोत्पादकत्वेन प्राणिनां दुःखोत्पादकत्वं युकम्-"