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जिनवाणी
है । अंगूठी या कुंडलके भिन्न भिन्न आकारोंमें, भिन्न भिन्न अलंकार रूपमें परिणत होने पर भी, उनमें हम प्रत्यभिज्ञानके प्रतापसे सुवर्ण नामक मूल द्रव्यको ही देख सकते है । भिन्न भिन्न परिणतियोंमें जो द्रव्यगत ऐक्य, सामान्य है उसे जैन दर्शन ऊर्ध्वता-सामान्य कहता है । ऊर्ध्वतासामान्यका पाश्चात्य नाम Substratum अथवा Esse है।
चिता साधारणतः चिन्ताको तर्क या ऊह कहा जाता है। प्रत्यभिज्ञानसे प्राप्त दोनों विषयोंमें अच्छेच संबन्धकी खोज करना तर्कका काम है। पाश्चात्य मनोविज्ञान इसे Induction कहता है। युरोपीय पाण्डत कहते है कि Indnation, observation भूयोदर्शनका फल है। जैन नैयायिक भी उपलम्भ और अनुपलम्भ द्वारा तर्ककी प्रतिष्ठा मानते है। दोनोंके कथनका तात्पर्य एक ही है। पाश्चात्य तार्किक Inductive Truth ores Invariable yan Unconditional relationship कहते है जैनाचार्योने कितनी ही शताब्दी पूर्व यही वात कह दी थी। उनके मतानुसार तर्कलब्ध सम्बन्धका नाम अविनाभाव अथवा अन्यथानुपपत्ति है।
अभिनिवोध तर्कलब्ध विषयकी सहायतासे होनेवाले अन्य विषयके ज्ञानको अमिनिबोध कहते है। साधारणतः अभिनिवोधको अनुमान माना जाता है। इसीको पाश्चात्य ग्रन्थोंमें अनुमान Deduction, Retiocmation अथवा Syllogism नाम दिया गया है। धुवां देखकर यह कहना कि पर्वतो वह्निमान् । (पर्वतमें अग्नि) है-इस प्रकारके बोधका नाम अनुमान