Book Title: Jinavani
Author(s): Harisatya Bhattacharya, Sushil, Gopinath Gupt
Publisher: Charitra Smarak Granthmala

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Page 260
________________ २२४ जिनवाणी दशम स्पर्शकर्म-इससे शरीरकी स्पर्श-शक्ति बनती है। 'स्पशकर्म आठ प्रकारका होता है (९६) जिसके उदयसे उष्ण स्पर्शवाला शरीर बनता है। (९७) जिसके उदयसे शीत स्पर्शवाला शरीर बनता है। (९८) जिसके उदयसे स्निग्ध स्पर्शवाला शरीर बनता है। (९९) जिसके उदयसे रूक्ष स्पर्शवाला शरीर बनता है। (१००) जिसके उदयसे मृदु स्पर्शवाला शरीर बनता है। (१०१) जिसके उदयसे कर्कश स्पर्शवाला शरीर बनता है। (१०२) जिसके उदयसे लघु स्पर्शवाला शरीर बनता है (१०३) जिसके उदशसे गुरु स्पर्शवाला शरीर बनता है। ग्यारहवां रसकर्म-इसके कारण विविध रसयुक्त शरीर बनता है। रसकर्म पांच प्रकारका है(१०४) तिक्त रसकर्म-जिसके उदयसे शरीरमें तिक्त रस उत्पन्न होता है। (१०५) कटु रसकर्म-जिसके उदयसे शरीरमें कटु रसको ___ उत्पत्ति होती है। (१०६) कषाय रसकर्म-जिसके उदयसे शरीरमें कषाय रसको उत्पत्ति होती है। (१०७) अम्ल रसकर्म-जिसके उदयसे शरीरमें अम्ल रस उत्पन्न होता है। (१०८) मधुर रसकर्म-जिसके उदयसे शरीरमें मधुर रस उत्पन्न होता है।

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