Book Title: Jinavani
Author(s): Harisatya Bhattacharya, Sushil, Gopinath Gupt
Publisher: Charitra Smarak Granthmala

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Page 284
________________ ૨૮ जिनवाणी मत्स्यपंक्ति जिस श्रृंखलासे गमनागमन करती है, उस श्रृंखलामें केवल सरोवरका पानी ही एकमात्र कारण है, ऐसा नहीं कहा जा सकता। मीनपंक्तिकी उपर्युक्त सुसंबद्ध गतिमें तालाबका पानी जिस प्रकार कारण बनता है उसी प्रकार मत्स्योंकी प्रकृति भी कारण बनती है। 'प्रमेयकमलमार्तण्ड' में प्रभाचन्द्रने कहा है____ "विवादापनसकलजीवपुद्गलाश्रयाः सकृद्गतयः साधारणवाह्यनिमित्तापेक्षाः युगपद्भाविगतित्वादेकसरः सलिलाश्रयानेकमत्स्यगतियत् । तथा सकलजीवपुद्गलस्थितयः साधारणबाह्यनिमित्तापेक्षा युगपद्भाविस्थितित्वादेककुण्डाश्रयानेकवदरादिस्थितिवत् । यत्तु साधारणं निमित्तं स धर्मोऽधर्मश्च, ताभ्याम् विना तद्गतिस्थितिकार्यस्यासम्भवात् ।" इसका भावार्थ यह है कि " समस्त जीव और पौद्गलिक पदार्थोकी गतियां एक साधारण बाह्य निमित्तकी अपेक्षा रखती है। क्यों कि ये समस्त जीव और पौद्गलिक पदार्थ युगपत् अर्थात् एक साथ गतिमान दिखलाई देते हैं । सरोवरके अनेक मत्स्योंकी युगपद्गति देखकर जिस प्रकार उस गतिके साधारण निमित्तरूप एक सरोवरमें वर्तमान जलका अनुमान होता है उसी प्रकार जीव पुद्गलकी गतिसे एक साधारण निमित्तका अनुमान करना पड़ेगा। समस्त जीव और पौद्गलिक पदार्थोंकी स्थितियां एक साधारण बाह्य निमित्तकी अपेक्षा रखती है। क्यों कि वे समस्त जीव और पौद्गलिक पदार्थ युगपत् स्थितिशील देखे जाते हैं । एक कुंडमें अनेक बेरोंकी युगपत् स्थिति देखकर जिस प्रकार उक्त स्थितिके साधारण निमित्तरूपसे कुंडका अनुमान होता है, उसी प्रकार जीव, पुद्गलकी स्थितिसे एक साधारण निमित्तका अनुमान

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