________________
महामेघवाहन महाराजा खारवेल
प्रिय नरपति है । वह वृद्धों और भिक्षुओंका राजा है। "
(२)
" पन्दरसवसानि सिरिकडारसरीरवता कीडिता कुमारकिडिका [1] ततो लेखरूपगणनाववहारविधिविसारदेन सवविजावदातेन नववसानि योवरज पसासित [1] संपुणचतुविसतिवस तदानि वधमान सेसयो वेनाभिविजयो ततिये । "
J4
" उसका शरीर अत्यन्त सुन्दर था । १५ वर्षकी आयु होने तक उसने बालक्रीडा की । तदनन्तर नौ वर्ष तक शिक्षा प्राप्त की। गणित, पोतविद्या, वाणिज्य और व्यवहार ( न्याय) आदि सीखकर सब विद्या - ओंमें विशारद हो गया । इस समय वृद्ध राजाकी अवस्था ८५ वर्षकी थी ।" यह अर्थ प्रिन्सेपका है । आजकल, पाण्डत इसका अर्थ इस प्रकार करते है - १५ वे वर्षमें उसने युवराजपद प्राप्त किया और नौ वर्ष तक
1.
}
वह युवराज रहा ।
१९१
1 ( ३ )
'कलिंगराजवसपुरिसयुगे महाराजाभिसेचन पापुनाति (1) अभिसितमतो पवने वसे वातविनगोपुरपाकारनिवेसन पटिसखारयति | कलिंगनगरि [F], खत्रीरइसिताळतडागपाडियो च वधापयति सवुयानपटिसठपनं च ।
61,
1
"
66
+
4
इस प्रकार २४ वर्षकी आयुमें जब ज्ञानवान् एवं धर्मज्ञाता होकर यौवनमें पदार्पण किया तब उसने कलिंगराजवंशीयोंके साथ पुरीके युद्धमें तीसरी बार विजय प्राप्त की । इस विजयसे इसकी महाराज पदवी पवित्र हुई | राज्याभिषेकके पश्चात् उसने विप्रधर्म अर्थात् वेद,शासित ब्राह्मणधर्म पर आसक्त होकर, आंधियोंसे जीर्ण हुवे नगर, किलों और घरोंका पुनरुद्धार कराया । कलिंग शहरमें दरिद्रों (अथवा साधुओं ) के लिये तालाब, घाट बनवाये और अन्य आव