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શર
जिनवाणी
करता है ।
(७) अचक्षुर्दर्शनावरण आंखके अतिरिक्त अन्य इन्द्रियोंकी दर्शनशक्तिको आवृत करता है।
(८) अवधिदर्शनावरण अवधिदर्शनको आच्छादित करता है। (९) केवलदर्शनावरण केवलदर्शन को आच्छादित रखता है । पांच प्रकारकी निद्राका दर्शनावरणीय कर्ममें समावेश होता है, यथा
(१०) निद्रा ।
(११) निद्रा निद्रा —एक प्रकारकी गंभीर निद्रा । (१२) प्रचला - एक प्रकारकी तन्द्रा । (१३) प्रचलाप्रचला एक प्रकारकी गंभीर तन्द्रा । (१४) स्त्यानगृद्धि — इस नींद में व्यक्ति चलता फिरता है । पाश्चात्य मनोविज्ञानमें इससे मिलता हुवा एक नाम Somnabulism है ।
(३) मोहनीय कर्म - यह कर्म जीवके सम्यक्त्व और चारित्र गुणका घात करता है | दर्शनमोहनीय और चारित्रमोहनीय भेदसे इसके प्रथमतः दो भेद हैं । दर्शनमोहनीय कर्मके परिणाम स्वरूप जीवका सम्यक्दर्शन अर्थात् तत्त्वार्थ विषयक श्रद्धा विकृत होती है। इसके ३ प्रकार है
(१५) मिथ्यात्वकर्म — अतत्त्वमें मिथ्या पदार्थमें जीवको श्रद्धा उत्पन्न हो जाती है ।