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जिनवाणी
रूप धारण करनेकी शक्ति होती है। परन्तु इससे उन्हें अधिक यातना भोगनी पड़ती है। इनके दुःख अपार होते है। और उन्हें वे दुःख दीर्घ काल तक भोगने पड़ते है। असुरकि भड़कानेसे तथा स्वयमेव भी नारकी जीव परस्पर लडते है और इस प्रकार असह्य दुःख उठाते है ।
मध्यलोकमें मनुष्य रहते है। इस मध्यलोकमें भी असंख्य द्वीप और समुद्र हैं। इन सब द्वीपोमें जम्बूद्वीप मुख्य है। इसका व्यास एक लाख योजन है। जम्बूद्वीप सूर्यमंडलके समान ही गोलाकार है। इसके केन्द्रस्थान पर 'मन्दर-मेरु' नामक पर्वत है। इसके आसपास महासागर किल्लोल करता है। महासागर भी अन्य महाद्वीपोंसे घिरा हुवा है।
जम्बूद्वीपसे मिले हुवे महासागरका नाम लवणोद है। इस समुद्रको जो द्वीप घेरे हुवे है उसका नाम धातकीखंड है। घातकोखंडके चारों ओर कालोद समुद्र है। उसके आगे पुष्करद्वीप है। सबके अन्तमें स्वयंभूरमण नामक महासमुद्र है। बीचमें बहुतसे महाद्वीप तथा महासमुद्र है।
जम्बद्वीपमें सात क्षेत्र है : (१) भरत. (२) हैमवत. (३) हरिवर्ष, (४) विदेह, (५) रम्यक्, (६) हैरण्यवत, (७) ऐरावत। ये क्षेत्र छ: वर्षधर पर्वत अथवा कुलाचलों द्वारा एक दूसरेसे पृथक् हो जाते हैं। इन पर्वतोके नाम इस प्रकार है : (१) हिमवान, (२) महाहिमवान, (३) निषध, (४) नील, (५) रुक्मी और (६) शिखरी। इन पर्वतोंकी पूर्व तथा पश्चिम दिशामें समुद्र है। । हिमवान सुवर्णमय है । महाहिमवान रजतमय है। निषधका रंग