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ईश्वर क्या है ?
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मुक्तिमार्ग प्राप्त करता है । जैन उपासनाका यह स्पष्ट रहस्य है । इसी लिये जैन लोग भाक्तभावसे नमस्कार ( नवकार) मन्त्रका उच्चारण करते हुवे कहते हैं-
" नमो सिद्धाणम् " – सिद्ध भगवानको नमस्कार ।
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ईश्वर सम्बन्धी जैन सिद्धान्त समझनेके लिये उपरोक्त विवेचनसे कुछ सहायता मिल सकती है। जैनोंके इस सिद्धान्तमें शंका या अश्रद्धाके लिये बिल्कुल स्थान नहीं है । इसमें गम्भीर गवेषणा और तत्त्वविचार गर्भित हैं इस बातका कोई इन्कार नहीं करेगा। जैनों को अनीश्वरवादी कहा जाता है, यह भूल है। मीमांसकोकी भांति जैन स्पष्टतः ईश्वरको अस्वीकार नहीं करते । अन्य दर्शनोंसे कितनी ही बातोंमें जैन दर्शनका साम्य है। उदाहरण स्वरूप सांख्यमतावलम्बी भी
'मुक्तात्मनः प्रशंसा उपासना सिद्धस्य वा । '
ऐसा कहते है | श्रुतिमें जो ‘स हि सर्ववित् सर्वकर्त्ता ' कहा गया है वह भी मुक्तात्माको लक्ष्य करके ही कहा गया है, यह बात समझने योग्य है । सांख्यके साथ जैन दर्शनकी यह एक समानता है ।
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योगाचार्य भी कहते है कि, ईश्वर सर्वज्ञ है, उसका ध्यान करने से आत्मोन्नति होती है, वह धर्मोपदेष्टा भी है।
वेदान्त भी कहता है कि मुक्त जोव ही ईश्वर है, वही ब्रह्मपदवाच्य है।
नैयायिकों को भी कहना पड़ता है कि ईश्वर सर्वज्ञ है ।