Book Title: Jinabhashita 2006 04 05 06
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 8
________________ "जब मूर्ति उठ गई, तो आँखों से इतने आँसू क्यों बह | आचार्यश्री ही जानते हैं । दैविक शक्तियों को सिद्धि अनुभूति निकले?" आचार्य श्री का उत्तर था- "मैं सोच रहा था, बड़े | इसलिये भी होती है कि जब औरंगजेब ने मूर्तिभंजन के बाबा मेरे साथ हैं कि नहीं। पर जैसे ही प्रतिमा उठी तो ऐसा | लिए बड़े बाबा के चरणों में घन प्रहार किया, तो चरणों से लगा कि हाँ ! बड़े बाबा मेरे साथ है। बस इसी सुखद | दुग्ध की धारा निकली और एक साथ हजारों मधुमक्खियों ने अनुभूति में ही............. आक्रमण कर मूर्तिभंजकों को भगा दिया। वहीं दैवी शक्तियाँ 20 वर्ष का युवा सरदार एक बहुत बड़ी क्रेन को प्रतिमा-स्थानांतरण के समय नागयुगल के रूप में प्रगट तो हैण्डिल कर रहा था। मूर्ति उठाने में वह काफी प्रयासरत था, | हुईं, पर गुरुवर की उत्कृष्ट तप:साधना और पुण्य प्रभावना पर मूर्ति उठ नहीं रही थी। वह निराश सा आचार्यश्री के पास | से अपार जनसमुदाय में भी किसी को किंचित् भी बाधा नहीं आशीर्वाद लेने आया। गुरुवर ने अपना आशीर्वाद देते हुए | हुई। वे शक्तियाँ बड़े बाबा की प्रतिमा के साथ आज भी हैं। उसे प्रोत्साहित किया। साथ ही साथ कुछ संकेत-निर्देश भी यक्षरक्षित, अतिशयकारी प्रतिमा का चुम्बकीय दिया। उस बेटे सरदार को बात समझते देर न लगी और | आकर्षण बुन्देलखण्ड ही नहीं, समूचे हिन्दुस्तान को अपनी उसने मन में कुछ ध्यान कर पुनः गुरुवर का आशीर्वाद | ओर खींचे हुए है। मूर्तिभंजक औरंगजेब जैसे क्रूर आततायी लिया। सरदार ड्रायवर सीट पर बैठा और ज्यों ही क्रेन | को भी सद्बुद्धि बड़े बाबा के चरणों में मिली। मैं चाहता हूँ संचालित की, कि मूर्ति एकदम फूल की तरह उठकर | उन्हें भी सद्बुद्धि मिले, जो बड़े बाबा की प्रतिमा में प्रभु की निर्माणाधीन नए मंदिर की ओर बढ़ गई। रहस्य केवल | भगवत्ता नहीं, केवल पुरातत्त्व ही देख रहे हैं। स्वयं सिद्ध इतना था कि युवा सरदार अपने घरेलू संस्कारों में शाकाहारी | साधक गुरुवर, न कंकर से लघु, न शंकर से गुरु, वरन् हम नहीं था। अतः ज्यों ही उसने मांसाहार-त्याग का संकल्प | जैसे हजारों लाखों अदना अकिञ्चन किंकरों के चलते फिरते लिया, उसके ब्रेन और क्रेन एकदम काम कर उठे। सच ही | प्रभु तीर्थंकर हैं। चरणों में विनम्र भक्ति-अर्घ अर्पित करते है, अहिंसा के देवता की मूर्ति अहिंसक आचरणवान् से ही | हुए केवल इतना ही भाव प्रगट करना चाहता हूँ कि सुना है आगे बढ़ सकती है। अपने अर्थराज्य की रक्षा के लिए बुन्देलखण्ड में एक महारानी जिस दिन बड़े बाबा संघसहित गरुवर और हजारों- लक्ष्मीबाई और एक महाराजा छत्रसाल हुए, किन्तु बुन्देलखण्ड हजार श्रद्धालुओं की साक्षी में नवीन वेदिका पर विराजमान | के बड़े बाबा और छोटे बाबा के धर्म-साम्राज्य के रक्षण और हुए, उस दिन गोंदिया (महाराष्ट्र) में आदिनाथ भगवान के | संवर्धन के लिए लाखों श्रद्धालु लक्ष्मीबाइयाँ और लाखों जन्मकल्याणक का उत्सव चल रहा था श्रेष्ठि श्रावक छत्रसाल तन-मन-धन से संकल्पित/समर्पित "ऊँ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं बडे बाबा अहँ नमः"का मंत्रोच्चारण कर | हैं। गुरुवर की छत्रछाया में हुए इस कार्य में समर्पित क्षेत्र रही थी। आचार्य श्री आदेश/आशीर्वाद से भले ही हम दोनों | कमेटी, युवा कार्यकर्ता, समूचा समाज और त्यागीव्रती ही (मुनि श्री समतासागर जी एवं ऐलक श्री निश्चयसागर जी) सही मायने में संस्कृति-संरक्षक हैं। धार्मिक तीर्थस्थलों की ब्र. विनय भैया सहित गोंदिया पंचकल्याणक में थे, पर मन | ऐसी सांस्कृतिक धरोहरों को सम्हालने के लिए “आपरेशन तो प्रतिक्षण बडे बाबा और छोटे बाबा के चरणों में लगा हुआ मोक्ष" जैसे नेक, श्रेष्ठ और समसामयिक कार्य के लिए था। इस शताब्दी का पहला अतिशय, पहला चमत्कार छोटे शासन, प्रशासन और कानूननिर्माता, कानूनविद् सहायकबाबा, बड़े बाबा को युगपत् नमस्कार । यह पवित्र कार्य कैसे | सहयोगी बनें। इसी शुभभावना के साथ बडे बाबा और छोटे सम्पन्न हुआ यह रहस्य सिर्फ स्वयं बड़े बाबा या छोटे बाबा | बाबा के चरणों में शत-शत प्रणाम। ___ मुनि श्री प्रमाण सागर जी के नित्य दर्शन एवं प्रवचन आचार्य श्री विद्यासागर जी के परम प्रभावक शिष्य मुनि श्री प्रमाण सागर जी महाराज के प्रवचन एवं आशीर्वचन आस्था चेनल पर अब 7 मई 2006 से प्रतिदिन सांय 6.00 बजे देखिये सुनिये और धर्म लाभ लीजिये। सन्तोष कुमार जैन सेठी डायरेक्टर - आस्था चेनल 10, प्रिंसेस स्ट्रीट, दूसरी मंजिल, कलकत्ता-1471 6/ अप्रैल, मई, जून 2006 जिनभाषित - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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