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नवजीवन दे दिया। आहार, पपौरा भी उसी कोटि के जर्जर | थी। जिस प्रकार जेम्स फर्ग्युसन ओर जेम्स बर्गेस ने धाराशिव क्षेत्र थे, जिन्हें धर्मसेवियों ने बड़ी मेहनत और लगन से पुनः | गुफाओं को ६वीं शती का बताकर अपनी अज्ञानता का साँसें दीं।
परिचय दिया है (जबकि गुफा नं. २/३ के प्रमुख द्वार पर कुंडलपुर का तीर्थक्षेत्र पहाड़ियों पर खड़े जर्जर मंदिरों | सिंधुघाटी लिपि के तीन अक्षर बार-बार दिखते हैं) उसी में चरमराता पड़ा था। आचार्य और साधुगण तीर्थयात्रियों की | प्रकार बड़े बाबा को ५ वीं ६वीं शती का बताने वालों ने भी तरह वहाँ जाते, कुछ दिन रुकते और आगे बढ़ जाते थे। इन | अपनी बुद्धि में भ्रमविशेष का परिचय दिया है। १५०० वर्ष पिछले २८-३० वर्षों में दिगंबराचार्य विद्यासागरजी के चरण | पूर्व बड़े बाबा एक टीले में दबे पड़े थे अर्थात उस टीले से वहाँ पड़ने से और चातुर्मासों के कारण भारत के कोने-कोने | पूर्व वे किसी मंदिर में विराजित रहे होंगे ही, जो किसी से ही नहीं, विदेशों से भी भक्तों ने आकर उनसे कर्तव्य | 'प्राकृत' आपदा के कारण ढह कर टीला बन गया और बड़े प्रेरणा पाकर इस क्षेत्र की दशा सुधारी। जब भी जिस मंदिर | बाबा उसमें दब गए होंगे। उनकी प्रामाणिकता का रहस्य वे के लिए आवश्यकता लगी जीर्णोद्धार हुआ। किंतु पुराने | और उनको उस काल में पूजनेवाले कदाचित् जो उस आपदा वस्त्र में जिस प्रकार रफू और थिगड़ों की एक सीमा होती है | से बचे होंगे, वही जानते होंगे। वह टीला मोहनजोदड़ो हड़प्पा
और उसे त्याग नया वस्त्र लेना ही पड़ता है, ठीक उसी | की तरह कितने काल तक सोया पड़ा रहा, कोई कह भी प्रकार पिछले भूकंप के झटकों में सर्वप्रसिद्ध सर्वप्रिय 'बड़े | नहीं सकता था। वह तो धन्य हुआ पटेरा का वह गाड़ीवाला बाबा' के मंदिर में भी दरारें बढ़ने लगी थीं। छोटी बड़ी १३ | बाबा जिसने ठोकर खाने पर उन्हें गाड़ी पर लाकर वहीं उस दरारों से भय लगने लगा था कि कभी वह मंदिर अगले | पहाड़ी पर पलटकर देखा (किंवदन्ती), अन्यथा 'बड़ेभूकंप से धराशायी होकर पुनः अपनी १५०० वर्ष पूर्व वाली | बाबा' कहीं और होते। कहा जाता है कि वह भी उसी समय 'टीला' स्थिति में न पहुँच जाए। भक्तों का ऐसा भय | 'मर' गया। अर्थात् 'बड़े-बाबा' पर्वत पर पहुँच तो गए, किंतु 'स्वाभाविक था क्योंकि वह 'बड़े बाबा' अत्यंत अतिशयी हैं | उनका मंदिर तो बाद में समाज ने बनाया। परम्परानुसार तब और अनेक बार अपने सातिशयी होने का प्रमाण दे चुके हैं। मंदिर बन जाने पर भगवान की पूजा हेतु पंचकल्याणक हुआ
उस मंदिर का छोटा-मोटा जीर्णोद्धार तो चलता ही होगा। तब उस मूर्ति को सूर्यमंत्रित करने से पूर्व कदाचित् रहता था, किंतु १५०० वर्ष पूर्व (उसके टीला बनने के | हाथ और वक्ष कलात्मक किए गए दीखते हैं। फलस्वरूप बाद) नए मंदिरनिर्माण के बाद भी उसमें जीर्णोद्धार होने का | पैरों की स्थूलता की तुलना में हाथ दुबले, नाजुक और वक्ष वर्णन लिखित पाया गया था। उस सातिशयी प्रतिमा की | भी कलात्मक झलक दर्शाता है। चेहरा और पैर अछूते छोड़ सुरक्षा अत्यंत आवश्यक थी, परंतु वह कैसे संभव हो सकेगी, | दिए गए। यही भय सबको घेरे था। बड़े बाबा तो जहाँ जम गए, सो ध्यान से देखने पर वह 'बड़े-बाबा' आदिनाथ का कोई उन्हें हिला ना सका। फिर अब कैसे रक्षा होगी? कुण्डलपुर | बिंब है। उनके बाल धुंघराले, केशगुच्छ इथियोपियन, ठोड़ी का क्षेत्र भी तो पुरातत्त्व के संरक्षण में था। किंतु पुरातत्त्व | ईजिप्शियन, कान श्रीलंकन और दृष्टि भारतीय है । मुस्कराहट विभाग की ओर से न तो कोई रखरखाव था न ही कोई | जिनश्रमण की और मुद्रा दिगम्बरत्व में ध्यानस्थ है। फिर भी फिकर।
श्री कृष्णदेव जैसे पुरातत्त्वज्ञ ने उन्हें अनदेखा करते हुए जैन कला और स्थापत्य के प्रथम भाग के १६ वें | उनकी स्थूलता को उपेक्षित कर दिया। तीन पंक्तियों के अध्याय में एएसआई द्वारा प्रदर्शित कुंडलपुर का 'बड़े बाबा' | वर्णन और चार चित्रों में उन्होंने कुण्डलपुर का संपूर्ण वैभव वाला मूल मंदिर दर्शाया गया है, जो कभी इस प्रकार छोटा- | समेटकर अपनी पुरातत्त्वीय जिम्मेदारियों का निर्वाह कर
बाद में इसे वर्तमान रूप दिया गया होगा। उस छोटे- | दिया। खंडहर बन वह 'बडे-बाबा' का मंदिर और सातिशयी से मंदिर में अनेक मूर्तियों को दीवालों में जड़ा गया था, | 'बड़े-बाबा' समाज की ओर निहारते किसी भूकंप अथवा । जिसके ३ चित्र श्री नीरज जैन ने कुंडलपुर संबंधी दर्शाए हैं। | किसी उद्धारक की राह देख रहे थे। उस समय तक 'बड़े बाबा' को किसी ने विशेष महत्ता नहीं | आचार्य विद्यासागर जी के चातुर्मास से दिगम्बर समाज दी थी। श्री कृष्णदेव ने बड़े बाबा-संबंधी मात्र तीन लकीरें | को साहस मिला और उसमें विचारविमर्श हुआ। भारत का लिखीं थीं। उन्होंने बड़े हिचकते हुए मात्र साधारण सूचना दी | विशाल दिगम्बर तेरहपंथी समाज मूर्ति की सुरक्षा हेतु उसे
-अप्रैल, मई, जून 2006 जिनभाषित / 13
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