Book Title: Jinabhashita 2006 04 05 06
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 43
________________ 3. श्री प्रवचनसार चारित्राधिकार गाथा 2 की टीका । शिखरेऽभिसूर्यमवस्थानम् ।" में आ. अमृतचन्द्र स्वामी ने इस प्रकार कहा है- "अहो अर्थ - गर्मी में पर्वत के शिखर पर सूर्य के सामने $ निःशङ्कितत्वनिःकांक्षितत्व-निर्विचकित्सत्वनिर्मूढष्टित्वोप- खड़े होकर ध्यान करना आतापन नामक कायक्लेश तप बृंहण-स्थितीकरण-वात्सल्य-प्रभावनालक्षण- दर्शनाचार, न है । चतुर्थ काल में तो आतापनयोग में स्थित साधुओं के शुद्धस्यात्मनस्त्वमसीति निश्चयेन जानामि तथापि त्वां बहुत से प्रमाण प्रथमानुयोग शास्त्रों में उपलब्ध होते तावदासीदामि यावत् त्वत्प्रसादात् शुद्धमात्मानमुपलभे । " हैं । इस पंचमकाल में भी चा.च. आ. शान्तिसागर जी अर्थ - अहो निःशंकितत्व, नि:कांक्षितत्व, निर्विचिकित्सत्व, महाराज आदि के द्वारा भी आतापनयोग किये जाने की निर्मूढदृष्टित्व, उपबृंहण, स्थितिकरण, वात्सल्य, प्रभावना-स्वरूप, दर्शनाचार, तू शुद्धात्मा का स्वरूप नहीं है, ऐसा कथाएँ चरित्र - ग्रन्थों में पाई जाती हैं। श्री भगवतीआराधना में आतापन योग के अतिचारों का वर्णन इस मैं निश्चय से जानता हूँ, तो भी तुझको तब तक स्वीकार करता हूँ, जब तक तेरे प्रसाद से शुद्ध आत्मा को प्राप्त हो प्रकार पाया जाता है - "उष्ण से पीड़ित होने पर ठण्डे पदार्थों के संयोग की इच्छा करना, यह मेरा संताप कैसे जाऊँ । नष्ट होगा " ऐसी चिन्ता करना "पूर्व में अनुभव किये गये शीतल पदार्थों का स्मरण होना" "कठोर धूप से द्वेष करना" शरीर को बिना झाड़े ही शीतलता से एकदम गर्मी में प्रवेश करना तथा शरीर को पिच्छी से स्पर्श करके ही धूप से शरीरसंताप होने पर छाया में प्रवेश करना इत्यादि आतापनयोग के अतीचार हैं 1 उपर्युक्त आगमप्रमाणों के अनुसार व्यवहारसम्यग्दर्शन पहले होता है, तदुपरांत वीतरागचारित्र का अविनाभावी निश्चयसम्यग्दर्शन होता है। जिज्ञासा : आतापन योग क्या 'क्या वर्तमान में यह किया जा सकता है ? समाधान : श्री अनगारधर्मामृत 7/32 की टीका में इस प्रकार कहा है- "आतपनमातापनं ग्रीष्मे गिरि * स्वतन्त्रता संग्राम में जैन ग्रन्थ को महावीर पुरस्कार श्री महावीरजी (राज.) । महावीर जयन्ती पर आयोजित विशाल मेला के अन्तिम दिन 14 अप्रैल को ज्योति जैन द्वारा लिखित 'स्वतन्त्रता संग्राम में जैन ग्रन्थ को महावीर पुरस्कार से सम्मानित किया गया। भा. दि. जैन तीर्थ कमेटी तथा दि. जैन अति. क्षेत्र श्री महावीरजी के अध्यक्ष श्री नरेश सेठी ने लेखक दम्पत्ति का तिलक लगाकर, शाल ओढ़ाकर सम्मान किया। जैन विद्या संस्थान के संयोजक डॉ. कमल चन्द जैन सौगानी ने पुरस्कार की पृष्ठभूमि पर प्रकाश डाला और कहा कि चयन प्रक्रिया के बाद हम पुरस्कार का निर्णय करते हैं। यही कारण है कि यह पुरस्कार कभी विवादों के घेरे में नहीं आया। डॉ. कपूरचन्द जैन ने कहा कि इस पुस्तक में 20 जैन शहीदों, संविधान सभा के छह जैन सदस्यों तथा उ. प्र. म. प्र. व राजस्थान के 750 जैन जेलयात्रियों का परिचय है। डॉ. ज्योति जैन ने जैन विद्या संस्थान और क्षेत्र कमेटी का आभार माना । १/२०५, प्रोफेसर्स कालोनी, आगरा (उ.प्र.) Jain Education International सांगानेर मन्दिर में भगवान ऋषभदेव ग्रंथमाला का लोकार्पण जयपुर, 30 अप्रैल 2006, विश्व विख्यात श्री दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र मन्दिर संघी जी सांगानेर में भगवान् ऋषभदेव ग्रन्थमाला एवं विशाल सिंहद्वार कपाटों का लोकार्पण मुनि श्री 108 सुधासागरजी महाराज के जयघोष के साथ हुआ। प्रातः 8.30 बजे मन्दिर परिसर में भगवान् ऋषभदेव ग्रन्थमाला का लोकार्पण आर. के. मार्बल के कंवरीलाल | अशोककुमार पाटनी ने मंत्रोच्चारण के साथ किया। तत्पश्चात् 19' x 12 फीट उतुंग सिंहद्वार के कपाटों का लोकार्पण सेवाराम जैन दिल्ली वालों ने किया । ' For Private & Personal Use Only डा. कस्तूरचन्द्र सुमन निर्मल कासलीवाल मानद मंत्री -अप्रैल, मई, जून 2006 जिनभाषित / 41 www.jainelibrary.org

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