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मुनि श्री क्षमासागर जी को मस्तक झुकाकर
नमस्कार करती हूँ
सिन्धुं क्षमायाः शिरसा नताहम्
डॉ. कुसुम पटोरिया अन्तर्बहीरूपमखण्ड मे कं, रागादिकालुष्यविमुक्तचित्तं । सद्धर्मधौरे यमनुत्तरन्तं सिन्धुं क्षमायाः शिरसा नताहम्॥1॥ सम्पूर्णविद्यासद्धद्भहमनदीष्णं, ज्ञानप्रभादीढनो यदीयं । संसारसिन्धूत्तरणे तरीन्तं, सिन्धुं क्षमायाः शिरसा नताहम्॥2॥ वीरस्य सद्वर्त्मनि सञ्चरन्तं, लोकात्मकल्याणसुसाधयन्तं । भक्त्या गुरौ पूरितमानसं तं, सिन्धुं क्षमायाः शिरसा नताहम्॥3॥ अध्यात्मक्षीरोदसमुत्थमथ्यं, ज्ञानामृतं वर्षक म्बुदन्तं । स्फूर्तिं हि प्राणेषु सुचारयन्तं, सिन्धुं क्षमायाः शिरसा नताहम्॥4॥ गाम्भीर्यमाधुर्य विशेषवाचा, भव्यान् हि सभ्यान् खलु पावयन्तं। तेषामघौघं परिक्षालयन्तं, सिन्धुं क्षमायाः शिरसा नताहम्॥5॥ भक्तान् तु सन्मार्गमुपादिशन्तं, वात्सल्यभावेन विबोधयन्तं । आकण्ठतृप्तिमनुभावयन्तं सिन्धुं क्षमायाः शिरसा नताहम्॥ 6 ।। धर्माय बालान् प्रतिबोधयन्तं, मैत्रीसमूहं च विवर्द्ध यन्तं दुस्साध्यसाधुव्रतमाचारन्तं, सिन्धुं क्षमायाः शिरसा नताहम्॥7॥ रोगैस्सदा तीव्र परीक्ष्यमाणं, क्षीणं तपोतप्तवपु : दधानं धैर्येणं ज्ञानेन च तं तरन्तं, सिन्धुं क्षमायाः शिरसा नताहय॥8॥
जिनका व्यक्तित्व अन्तर्बाह्य अखण्डित एकरूप है, जिनका चित्त रागादि कलुषताओं से विमुक्त है, जो सद्धर्म की धुरा को धारण करनेवाले अनुपम अनुत्तर हैं, उन क्षमासागर मनिराज को मैं मस्तक झुकाकर नमस्कार करती हूँ।
2 सम्पूर्ण विद्यारूपी नदी के जो पारंगत हैं, जिनका मन ज्ञानप्रभा से दीप्त है, जो संसारसिन्धु को पार करने के लिए नौका के समान हैं, उन क्षमासागर मुनिराज को मैं मस्तक झुकाकर नमस्कार करती हूँ।
3 महावीर द्वारा निर्दिष्ट सन्मार्ग पर जो चल रहे हैं, आत्मकल्याण के साथ लोक कल्याण की भी सुन्दर साधना कर रहे हैं, जिनका मन गुरु की भक्ति से लबालब भरा हुआ है, उन क्षमासागर मुनिराज को मेरा प्रणाम है।
4 जो अध्यात्मरूपी क्षीरोनिधि के मंथन से उत्पन्न ज्ञानामृत की वृष्टि करने वाले मेघ हैं, जो प्राणों में स्फूर्ति का संचार करते हैं, उन क्षमासागर मुनिराज को मैं मस्तक झुकाकर नमस्कार करती हूँ।
जो गाम्भीर्य व माधुर्य गुण से युक्त वाणी के द्वारा सभा में स्थित भव्यों को पवित्र करते हुए उनके पापसमूह का प्रक्षालन करते हैं, उन क्षमासागर मुनिराज को मैं मस्तक झुकाकर नमस्कार करती हूँ।
6 जो भक्तों को सन्मार्ग का उपदेश दे रहे हैं, वात्सल्य भाव से उनको संबोधित कर रहे हैं तथा आकण्ठ तृप्ति का अनुभव करा रहे हैं, उन क्षमासागर मुनिराज को मैं मस्तक झुकाकर नमस्कार करती हूँ।
बालकों को धर्म के विषय में प्रतिबोधित करनेवाले, मैत्रीसमूह नामक संस्था को वृद्धिंगत करनेवाले, कठिनता से साध्य मुनिव्रत का आचरण करनेवाले क्षमासागर मुनिराज को मैं मस्तक झुकाकर नमस्कार करती हूँ।
8 रोग सदा तीव्रता से जिनकी परीक्षा लेते रहते हैं, उन तपस्या से तप्त क्षीणकाया को धारण करनेवाले तथा धैर्य व ज्ञान से रोगों द्वारा ली गई परीक्षा को उत्तीर्ण करनेवाले क्षमासागर मुनिराज को मैं मस्तक झुकाकर नमस्कार करती हूँ।
रीडर, संस्कृत विभाग नागपुर विद्यापीठ, नागपुर (महाराष्ट्र)
44 / अप्रैल, मई, जून 2006 जिनभाषित
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