Book Title: Jinabhashita 2006 04 05 06
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 52
________________ 0 रजि नं. UPHIN/2006/16750 मुनिश्री क्षमासागर जी की कविताएँ गन्तव्य पहला कदम एक अनुभूति जितनी दूर देखता हूँ, उतनी ही रिक्तता पाता हूँ जितना निकट आता हूँ उतना ही भर जाता हूँ। सारे द्वार खोलकर बाहर निकल आया हूँ, यह यात्रा पर निकला हूँ, लोग बार-बार पूछते हैं, कितना चलोगे? कहाँ तक जाना है? मैं मुस्कराकर आगे बढ़ जाता हूँ, किससे कहूँ कि कहीं तो नहीं जाना, मुझे इस बार अपने तक आना है। मेरे भीतर प्रवेश का पहला कदम है। "अपना घर" से साभार मुनि श्री क्षमासागर जी के स्वास्थ्य में सुधार आचार्य श्री विद्यासागर जी के परम शिष्य मुनि श्री क्षमासागर जी एवं मुनि श्री भव्यसागर जी ने अपने मुरैना वर्षायोग के पश्चात् ग्वालियर होते हुए 18 दिसम्बर 2005 को शिवपुरी नगर में प्रवेश किया और वहाँ से 17 फरवरी 2006 को पदविहार करते हुए६ मार्च को गुना नगर में पदार्पण किया। आचार्यश्री के आदेशानुसार मुनि श्री अभयसागर जी एवं मुनि श्री श्रेयांससागर जी भी कुण्डलपुर से विहार कर 6 मार्च को गुना नगर में पधारे। मुनि श्री क्षमासागर जी, मुनि श्री भव्यसागर जी, मुनि श्री अभयसागर जी एवं मुनि श्री श्रेयांस सागर जी का स्थानीय स्टेडियम में गुना नगरवासियों ने भव्य स्वागत किया और जुलूस के साथ चौधरी मुहल्ले के मन्दिर परिसर तक समारोह पूर्वक उन्हें लाया गया। वहाँ जुलूस धर्मसभा में परिवर्तित हो गया। इस समय चारों मुनिराज इस परिसर में विराजमान हैं और धर्म प्रभावना कर रहे हैं। मुनि श्री क्षमासागर जी ने अस्वस्थता के बाबजूद शिवपुरी से गुना नगर को पद-विहार किया। आचार्य श्री के आशीर्वाद से उनके स्वास्थ्य में अब सुधार हो रहा है और आशा है कि वे शीघ्र ही पूर्ण स्वस्थ हो जावेंगे। ब्र. शन्तिलाल जैन स्वामी, प्रकाशक एवं मुद्रक : रतनलाल बैनाड़ा द्वारा एकलव्य ऑफसेट सहकारी मुद्रणालय संस्था मर्यादित, 210, जोन-1, एम.पी. नगर, __Jain Education Internationaभापाल (म.प्र.) स मुद्रित एव 1/205 प्राफसर कॉलोनी, आगरा-282002 (उ.प्र.) से प्रकाशित / संपादक : रतनचन्द जैन। For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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