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के वर्तमान सिद्धान्तों के अनुरूप जीव जन्तुओं को उनके | अत्याधुनिक शिक्षा को अपनी समाज के अंतिम पंक्ति के प्राकृतिक पर्यावास में रखने की दृष्टि से मोटे दोहरे कपड़े से | अंतिम सदस्य तक नहीं पहुँचाया, तो हम पिछड़ जावेंगे। पानी छानने और कपड़े में आयी जीवराशि को जल के तल | कृषियुग में केवल भूमि, पूँजी एवं श्रम की आवश्यकता तक करुणापूर्वक पहुँचाने का महत्त्वपूर्ण सिद्धान्त हमें दिया | होती थी, किन्तु सूचना की आगामी शताब्दी मे इन तीनों से है। आज भी अनेक जैन घरों में इस सिद्धान्त का नियमित | अधिक ज्ञान की आवश्कता होगी। ज्ञान-विशेषज्ञ, ज्ञानवान् पालन किया जाता है। इस लेखक के प्रयास से 1980 के | कर्ता एवं ज्ञानवान् व्यक्ति ही हमारे समाज की महत्त्वपूर्ण दशक में विश्वस्तरीय संस्थाओं ने कपडे से पानी छानने की| पूँजी होंगे। ज्ञानवान समाज ही प्रगति के सर्वोच्च सोपान पर प्रक्रिया अपनाने के लिए अनेक परिपत्र विश्व के सभी | स्थित होगा। अत: मेरा विनम्र निवेदन है कि हम इसी प्रकार राष्ट्रों को प्रेषित किए हैं । यह उपयुक्त प्रतीत होता है कि हम | की दृढ़ इच्छा शक्ति, संपूर्ण समर्पण और तन, मन, धन से बड़े बाबा के मंदिर परिसर में वैज्ञानिक ढंग से पानी छानने | | यह सुनिश्चित करें कि हमारे समाज के प्रत्येक पुत्र और की प्रक्रिया एवं इसके आधारभूत सिद्धांत एवं जैनभोजन | पुत्री को राष्ट्रीय स्तर के उत्कृष्टतम शिक्षाकेन्द्रों मे सर्वोच्च और उसके प्रभावों का मल्टी मीडिया के माध्यम से | शिक्षा प्राप्त करने के लिए आवश्यक साधन और सुविधाएँ प्रस्तुतीकरण करें।
प्राप्त हों, जिससे वे अपना शैक्षणिक लक्ष्य प्राप्त कर सकें इक्कीसवीं शताब्दी ज्ञान की शताब्दी है। इस शताब्दी | और अपनी, अपने परिवार और अपनी समाज की चतुर्मुखी में किसी भी व्यक्ति, समाज एवं राष्ट्र की पहचान ज्ञान से | प्रगति कर सकें। होती है। समय की आवश्यकता के अनुरूप यदि हमने
30, निशात कालोनी, भोपाल
भगवान् श्रेयोनाथ जी जम्बूद्वीप संबंधी भरत क्षेत्र के सिंहपुर नगर के दिन प्रातः काल एक हजार राजाओं के साथ दीक्षा धारण स्वामी इक्ष्वाकु वंश में प्रसिद्ध विष्णु नाम के राजा राज्य की। पारणा के दिन उन्होंने सिद्धार्थ नगर में प्रवेश किया। करते थे। उनकी महारानी का नाम सुनन्दा था। महारानी वहाँ सुवर्ण के समान कान्ति वाले नन्द राजा ने भक्तिपूर्वक सुनन्दा ने फाल्गुन कृष्ण एकादशी के दिन पुष्पोत्तर । आहार देकर पञ्चाश्चर्य प्राप्त किये। इस प्रकार छद्मस्थ विमानवासी अच्युतेन्द्र को तीर्थंकरसुत के रूप में जन्म अवस्था के दो वर्ष बीत जाने पर एक दिन महामुनि दिया। शीतलनाथ भगवान् के मोक्ष जाने के बाद जब सौ । श्रेयांसनाथ मनोहर नामक उद्यान में बेला का नियम लेकर सागर और छयासठ लाख छब्बीस हजार वर्ष कम एक तुम्बुर वृक्ष के नीचे ध्यानस्थ हुए। वहीं पर उन्हें माघकृष सागर प्रमाण अन्तराल बीत गया तथा आधे पल्य तक। अमावस्या के दिन सायंकाल के समय घातिया कर्म के धर्म की परम्परा विच्छिन्न रही, तब भगवान् श्रेयांसनाथ नष्ट हो जाने पर केवलज्ञान प्राप्त हुआ। भगवान् के का जन्म हुआ था। उनकी आयु भी इसी अन्तराल में समवशरण की रचना हुई जिसमें चौरासी हजार मुनि, एक शामिल थी, उनकी कुल आयु चौरासी लाख वर्ष की । लाख बीस हजार आर्यिकायें, दो लाख श्रावक, चार लाख थी। शरीर सुवर्ण के समान कान्ति वाला था तथा शरीर श्राविकायें, असंख्यात देव-देवियाँ और संख्यात तिर्यंच की ऊँचाई अस्सी धनुष थी। जब उनकी कुमारावस्था के थे। इस प्रकार धर्म का उपदेश देते हुए वे भगवान् इक्कीस लाख वर्ष बीत चुके तब भगवान् ने राज्य पद सम्मेदशिखर पर जा पहुँचे। वहाँ एक माह का योगप्राप्त किया। प्रजापाल बनकर न्याय नीति पूर्वक ब्यालीस निरोध कर एक हजार मुनियों के साथ उन्होंने प्रतिमायोग लाख वर्ष तक उन्होंने राज्य किया। तदनन्तर किसी एक धरण किया और श्रावण शुक्ला पौर्णमासी के दिन सायंकाल समय वसन्त ऋत का परिवर्तन देखकर उन्हें वैराग्य के समय अघातिया कर्मों का क्षयकर मोक्ष प्राप्त किया। हुआ जिससे उन्होंने अपने श्रेयस्कर पुत्र के लिए राज्य
मुनि श्री समतासागरकृत 'शलाका पुरुष' से साभार देकर बेला का नियम लेकर फाल्गुन कृष्ण एकादशी के
-अप्रैल, मई, जून 2006 जिनभाषित / 21
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