Book Title: Jinabhashita 2006 04 05 06
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 6
________________ यह स्पष्ट करना चाहते हैं कि बड़े बाबा की मूर्ति उनके लिए तो मात्र ऐतिहासिक महत्त्व की वस्तु है, किंतु देश की सम्पूर्ण दि. जैन समाज के लिए प्राणों से भी अधिक मूल्यवान् धार्मिक श्रद्धा की केन्द्रभूत निधि है। पुरातत्त्व विभाग ने पहले भी मूर्ति की सुरक्षा की चिंता नहीं की है और आज भी न्यायालय से यथास्थिति प्राप्त कर मूर्ति को पुनः असुरक्षित स्थिति में पहुँचा दिया है, जो अनुत्तरदायित्वपूर्ण होने के साथ-साथ असंवैधानिक भी है। हम केन्द्रीय पुरातत्त्व विभाग के अधिकारियों और केन्द्रीय सरकार से निवेदन करते हैं कि हमें हमारी धार्मिक एवं आध्यात्मिक आस्था की प्रतीक इस प्राचीन मूर्ति को सुरक्षित करने में बाधक न बनें, अन्यथा देश का संपूर्ण दि. जैन समाज आंदोलन करने के लिए बाध्य होगा। तीर्थक्षेत्रों की सुरक्षा के प्रकरण में हमारे अपनों में से ही कुछ व्यक्ति यदि व्यक्तिगत कुंठाओं अथवा पक्षाग्रहों के आधार पर आपसी विचारविनिमय का सहयोगात्मक मार्ग छोड़कर दि. जैन समाज के व्यापक हितों के विरुद्ध संघर्षात्मक मार्ग अपनायेंगे, तो यह हमारा दुर्भाग्य ही होगा। काश! हम यह समझ पायें कि धर्म की अप्रभावना का अथवा धर्मायतनों के विकास में बाधा डालने का छोटा सा कार्य भी आग की चिनगारी की भाँति हमारे लिये भारी हानि का कारण सिद्ध होगा। ___ यह प्रसंग हमें यह प्रेरणा देता है कि देश की सम्पूर्ण दि. जैन समाज को अपने तीर्थक्षेत्रों एवं धर्मायतनों की सुरक्षा के संबंध में गंभीर विचार करना चाहिए। इस प्रजातांत्रिक शासन के युग में संगठित और अनुशासित समाज को ही सम्मानपूर्वक जीने और अपने अधिकारों की सुरक्षा करने का अधिकार है। इस न्यायिक प्रकरण का निर्णय दि. जैन समाज के अस्तित्व एवं अस्मिता के संबंध में दूरगामी प्रभाव डालने वाला होगा। मूलचंद लुहाड़िया भील भोली भावना के गीत गाते वनवासियों की ओर से मुनि श्री चिन्मय सागर जी को समर्पित मनोज जैन 'मधुर' मुंदित हो, ठुमके लगाकर, गाँव का, हर पाँव नाचा। भक्ति की, इस भावना का, हर नयन ने, भाव बाँचा, विविध वर्णी पुष्प चरणों में चढ़ाते। भील-भोली, भावना के गीत गाते। त्यागते, आहार-आमिष देख मूरत त्याग की। भावना भाते-शरण में, बैठकर वैराग की। मुनिश्री की, चरण-धूली, सिर लगाते, भील-भोली भावना के गीत गाते ३ बस्तियाँ शापित अहिल्या की तरह पथ हेरतीं। मुक्ति पाने भवभ्रमण से मुनिश्री को टेरतीं। उपदेश गौतम का मुनी इनको सुनाते। भील-भोली भावना के गीत-गाते। इंदिरा कालोनी, भोपाल 4/ अप्रैल, मई, जून 2006 जिनभाषित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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