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अथवा मंदिर मूर्ति को क्षति पहुँचाने में नियमों का भंग है | कर दिया। धीरे-धीरे जो मुनि वस्त्र धारण कर आरंभपरिग्रह
और उसका सर्वदा विरोध किया जाना चाहिए। आश्चर्य है | धारण करने लगे, वे भट्टारक कहलाये। वे अनेक स्थानों कि आप समझ-सोचकर सुरक्षा के लिए की गई तोड़-फोड़ | पर गद्दियाँ स्थापित कर मठाधीश बन गए। इन्होंने मंदिरों और क्षति पहुँचाने के लिए की गई तोड़-फोड़ में अंतर नहीं | की, धर्म की रक्षा भी की, किंतु धर्म की परंपरा को हानि भी कर पा रहे है। भूकंपग्रस्त मंदिर की जीर्ण दीवारों के भीतर | पहुँचाई। नग्न होकर दीक्षा लेकर पीछी कमंडल लेने के विराजमान 1500 वर्ष प्राचीन जन जन की श्रद्धा का केन्द्र | पश्चात् समाज की प्रार्थना पर वस्त्र धारण कर गद्दी पर बैठ मूर्ति की सुरक्षा महत्त्वपूर्ण है या वे जीर्ण दीवारें ? उस | | जाते। ऐसे आरंभ-परिग्रहवाले पीछी रखते हुए दिगम्बर मुनियों महत्त्वपूर्ण मूर्ति की सुरक्षा के लिए उन दीवारों को क्षति भी । | के समान अपनी विनय कराने लगे। दिगम्बर जैन धर्म के पहुँचती हो, तो भी क्या हम मूर्ति की सुरक्षा के लिए वैसा | चरणानुयोग के शास्त्रों में भट्टारकों का कोई स्थान नहीं है। नहीं करेंगे?
भट्टारकों ने श्रावकों को शास्त्रस्वाध्याय के द्वारा तत्त्वज्ञान 6. गिरनार एवं खंडगिरि-उदयगिरि में किए जा रहे | प्राप्त नहीं करने दिया और श्रावकों को सरागी देवदेवताओं अतिक्रमण अजैनों के द्वारा जैनत्व के चिन्हों के विध्वंस के | की पूजा व मंत्रतंत्र में उलझा दिया। इन भट्टारकों ने बीसपंथ लिए किए जा रहे अतिक्रमण हैं। उनका सदैव विरोध किया | की स्थापना की। उस आचरण के शैथिल्य के विरोध में जाना चाहिए। किंतु कुंडलपुर के तो पुराने जीर्णशीर्ण छोटे | स्वाध्यायशील विद्वानों द्वारा तेरहपंथ की स्थापना की गई। अँधेरे मंदिर में विराजित बड़े बाबा की अति प्राचीन अमूल्य | दोनों पंथभेदों के पक्षव्यामोह से उपर उठकर हमें वीतराग धरोहर को आने वाले सैकड़ों वर्षों तक सुरक्षित करने एवं | दि. जैन धर्म एवं वीतरागी देवशास्त्रगुरु पर श्रद्धा रखनी श्रद्धालु दर्शनार्थियों को सहज दर्शन उपलब्ध कराने के लिए | चाहिए। आप किस प्रमाण के आधार पर कहते हैं कि विशाल मंदिर का निर्माण और मूर्ति का वहाँ स्थानांतरण | कुंडलपुर का मंदिर बीसपंथी आम्नाय का मंदिर था। ऐसी वस्तुतः पुरातत्त्व की सुरक्षा का स्वयं में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण | निराधार असत्य बातों के प्रचार से समाज में कटुता बढ़ती कार्य है।
है। कृपया समाज में पंथभेद का विद्वेष मत फैलाइए और ____7. दि. जैन समाज को अपने धर्मायतन, तीर्थक्षेत्र | ऐसी उत्तेजनात्मक बातों से समाज में अशांति उत्पन्न करने एवं मूर्तियों की दर्शनपूजा करने के लिए सुरक्षासँभाल स्वयं | का प्रयास मत कीजिए। यक्ष-यक्षणियों की मूर्तियाँ जो भी ही करनी चाहिए और प्रायः समाज ऐसा ही कर भी रही है। | थीं, वे रहेंगी। मूर्तियाँ हटाने का झूठा दुष्प्रचार कर आप श्री शांतिनाथ भगवान के मंदिर को यदि पुरातत्त्व की लिस्ट | समाज का कौनसा उपकार कर रहे हैं ? से अलग कर दिया है, तो इसमें हमारा लाभ ही है हानि नहीं 9. प्राचीन मंदिरों के स्वरूप को नष्ट करना कभी है। देलवाडा के श्वेताम्बर जैन मंदिर कला की दृष्टि से भी उचित नहीं माना जा सकता। किंतु जो मंदिर जीर्णशीर्ण अत्यंत महत्त्वपूर्ण पुरातात्त्विक स्मारक हैं। उनको श्वेताम्बर हो गया हो और जिसकी मरम्मत भी संभव नहीं हो वह तो समाज ने पुरातत्त्व विभाग के बजाय अपनी ही सुरक्षा व्यवस्था गिरेगा ही। यहाँ बड़े बाबा की मूर्ति की सुरक्षा के लिए मंदिर में रखा हुआ है।
की दीवारों को तोड़ना अनिवार्य था। क्या हमें उस दिन की 8. इस पैरा में लगता है, आपके मन में बैठा पक्षपात | प्रतीक्षा करना उचित था, जिस दिन मंदिर ध्वस्त होकर बडे बोल रहा है। माननीय चवरे जी! इस प्रकार पक्षविमोह के | बाबा की प्राचीन मूर्ति को नष्ट कर देता। वश निराधार बातें लिख कर समाज में क्षोभ उत्पन्न करने 10. यह कार्य मूर्ति की सुरक्षा का, तीर्थ की सुरक्षा का प्रयास मत कीजिए। आम्नाय की बातें विद्वेषवश मत | का, तथा इस कारण धर्म की रक्षा का कार्य हुआ है। जिनके कीजिए। यदि आप निष्पक्ष होकर विशुद्ध ऐतिहासिक तथ्यों मन में विद्रोह की ज्वाला धधक रही हो, वे कैसे वीतरागी की जानकारी करेंगे, तो पायेंगे कि तेरापंथ-बीसपंथ के पंथभेद | दिगम्बर मुनि या आचार्य हो सकते हैं? बारहवीं शताब्दी के बाद की उपज हैं। पहले तो दिगम्बर 11. पक्षव्यामोह के कारण एवं गलतफहमियों के जैनधर्म में वीतरागीदेव, वीतरागी दिगम्बर गुरु और वीतरागधर्म कारण आपकी लेखनी से निराधार बातें लिखी जा रही हैं। के प्ररूपक शास्त्र थे। बारहवीं शताब्दी से कुछ मुनियों में | हमें पंथ की दुहाई देकर श्रद्धालुओं को भड़काने का अनुचित शिथिलता आई और उन्होंने वस्त्र का उपयोग करना प्रारंभ | कार्य नहीं करना चाहिए। अपने-अपने मंदिरों के व्यवस्थापक
8/ अप्रैल, मई, जून 2006 जिनभाषित
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