Book Title: Jinabhashita 2006 04 05 06
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

View full book text
Previous | Next

Page 12
________________ कुंडलपुर का करिश्मा नजीर/ओमप्रकाश ___ पुरातत्त्व-संरक्षित मंदिर से बड़े बाबा की मूर्ति को निकालकर नए मंदिर में प्रतिष्ठित करना देश में एक नई बहस खड़ी कर गया है। यह कि पुराने, प्रसिद्ध और प्रतिष्ठित धर्मस्थलों, सिद्धपीठों को पुरातत्त्व के हवाले काल के गाल में समा जाने के लिए छोड़ दिया जाए या जहाँ संभव हो, वहाँ समाज को उनके परिवर्तन, परिवर्धन और विकास के अधिकार दे दिए जाए। सत्रह जनवरी को पुराने जीर्ण-शीर्ण मंदिर से १५०० | राज्य-दर-राज्य अपने को अल्पसंख्यक घोषित कराने की साल पुरानी भगवान आदिनाथ की मूर्ति को छत हटाकर | जो कोशिशें कीं, उनके पीछे का एक तर्क यही था कि क्रेन से उठाने और उसे नए मंदिर में प्रतिष्ठित करने की | अल्पसंख्यक की सुविधा मिल जाने से उनके लिए तीर्थों से घटना को जैन समाज ने चमत्कार में बदल दिया है - 'बड़े | अतिक्रमण हटवाना और उनका विकास करना आसान हो बाबा की प्रतिमा पुष्प की तरह भारहीन होकर आकाशमार्ग | जाएगा। फिलहाल, ताकि सनद रहे, कुंडलपुर के 'ऑपरेशन से नवनिर्माणाधीन विशाल और भव्य मंदिर के उच्चासन पर | मोक्ष' की अंदरूनी और संपूर्ण कथा ध्यान में रखने लायक विराजमान हुई।' मूर्ति कोई फूल की तरह हल्की नहीं हुई, | है। आकाशमार्ग से कोई उड़कर भी नहीं गई, पर जो हुआ है, | दमोह से लगभग 35 कि.मी. दूर कुंडल के आकार वह किसी चमत्कार से कम नहीं है और केंद्र सरकार के | की पहाड़ियों के बीच कुंडलपुर में छोटे-बड़े ६४ जैन मंदिर लिए भी एक चेतावनी है कि 'तटस्थ कोई नहीं होता' और | अवस्थित हैं। इनमें सबसे प्रसिद्ध मंदिर, संभवतः छठी सदी जो ज्यादा तटस्थ (निष्क्रिय) होता है, उसकी साँसत हमेशा | में पहली बार बना, जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर आदिनाथ का बनी रहती है। देश की पहली, पर शायद आखिरी नहीं | है। मंदिर में लगभग 15 फुट ऊँची, 11 फुट चौड़ी, पद्मासन होगी, घटना है, जिसने पुरातत्त्व विभाग को यह सबक सिखाया | में बनी उनकी मूर्ति विराजमान रही है। परकोटे के बाहर है कि पुरा महत्त्व के पूजास्थलों के संरक्षण का अर्थ यह नहीं | अंतिम केवली श्रीधर स्वामी की निर्वाणस्थली भी है। १६५७ कि उन्हें खडहर में बदलने, नष्ट होने के लिए छोड़ दिया | में पन्ना के हिन्दुत्व संरक्षक-शिवा को सराहो 'कि सराहो जाए। जीवंत और जागृत देवस्थान, पर्यटकों और पुरातत्त्वविदों छत्रसाल को।' राजा छत्रसाल ने इसका जीर्णेद्धार कराया। के लिए तो वस्तु और वास्तु हो सकते हैं, पर आस्थावान् | १९९७-९८ में आए भूकम्प के झटके से मंदिर में दरारें पड़ समाज के लिए तो वे शक्तिस्थल हैं। इसलिए, अब नजीर | गईं। १९७६ में पहली बार दर्शन करने आए आचार्य श्री बन गई है, तो यह सवाल बार-बार उठने वाला है कि | विद्यासागर जी महाराज ने पहले ही इस सिद्धक्षेत्र को विकसित शक्ति स्थलों को काल के गर्त में समा जाने के लिए छोड़ करने के लिए चुना था। भूकम्प से मंदिर में दिया जाए या कि समाज यदि चाहे, तो उसे संरक्षण, परिवर्धन, | ने उन्हें और भी कृत-संकल्पित किया। 'पुरातत्त्व विभाग विस्तार और विकास के अधिकार दे दिए जाएँ। कान्हेरी | को पुरातत्त्व की चिंता है, हमें पूरे तत्त्व की', उन्होंने यह केव्स की विरूपित मूर्तियों, साँची के स्तूपों में पड़ रही | चिंता जताई। विचार दिया कि क्षतिग्रस्त मंदिर के गिरने पर दरारों, भोजपुर मंदिर की गिरी हुई छत (पुरातत्त्व ने छत की | मूर्ति भी क्षतिग्रस्त हो सकती है, इसलिए नया मंदिर बनाकर जगह प्लास्टिक बिछाया है) को देखकर किन आँखों में | मूर्ति उसमें प्रतिष्ठित की जानी चाहिए। भूकम्प के बाद आँसू नहीं आते। लाल किलों और राजमहलों को संरक्षित | पुरातत्त्व विभाग के सर्वे में भी यह बात आई कि मंदिर के करने और मंदिरों को संरक्षित करने में फर्क है। कोई अचरज | ७० खंभों में से १९ अपनी जगह छोड़ चुके हैं, मंदिर ८० नहीं कि प्रशासन कुंडलपुर के 'ऑपरेशन मोक्ष' से इसलिए | फीसदी जर्जर है, इसलिए या तो मूर्ति वहाँ से निकाल ली भी चिंतित है कि 100-125 कि.मी. दूर खजुराहो के मंदिरों | जाए या मंदिर को ठीक किया जाए या फिर नया मंदिर के लिए भी कहीं कोई ऐसी ही माँग न उठ जाए। केंद्र | बनाया जाए। सरकार से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक पहले से ही इसी से | १९१३ में पुरातत्त्व विभाग ने इन मंदिरों को संरक्षित मिलते-जुलते एक मामले में हलाकान हैं। जैन समाज ने | घोषित किया था। पर संरक्षण की हालत यह रही है - 10 / अप्रैल, मई, जून 2006 जिनभाषित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52